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मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास ____अध्यात्म गीता की रचना लिंबडी में हुई थी और यह भी भाग दो में प्रकाशित है। इसका आदि देखिए--- प्रणमि ओ विश्वहित जैन वाणि, महानंदतरु सिचवा अमृत पाणि; महामोहपुर भेदबा वज्रपाणि, गहन भव फंद छेदन कृपाणि ।
वीर जिनवर निर्वाण ( अथवा दिवाली नुं स्तवन ) दिवाली (दीपावली, भावनगर) इसके मंगलाचरण के दो श्लोक संस्कृत में हैं। इसकी अंतिम दो पंक्तियाँ दे रहा हूँ -
शासन नायक वीर जिनेसर, गुण गाता जयमालो,
देवचंद्र प्रभु सेवन करतां, मंगलमाल विशालो रे ।' यह भी श्रीमद् देवचंद्र भाग २ में प्रकाशित है।
आपने पद्य के साथ कई महत्वपूर्ण गद्य रचनाएँ भी की हैं जिनमें आगमसार, नयचक्रसार, गुरुगुणछत्रीसी बालावबोध, सप्तस्मरण बालावबोध आदि विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं । इनका संक्षिप्त परिचय दिया जा रहा है । आगमसार (सं० १७७६ फाल्गुन शुक्ल ३, भौमवार, मरोट) यह मरुगुर्जर गद्य की प्रारंभिक रचनाओं में महत्वपूर्ण है। इसमें लेखक ने अपनी गुरु परंपरा तथा ग्रंथ रचना के हेतु आदि पर प्रकाश डाला है। यह रचना प्रकरण रत्नाकर भाग १-२ और श्रीमद् देवचन्द भाग १ में प्रकाशित है। इसका प्रारंभ इस प्रकार हैअथ भव्य जीव नै प्रतिबोधवा निमित्त मोक्षमार्ग नी
वचनिका कहै छै । तिहां प्रथम जीव अनादि काल नौ मिथ्याती थी।
काल लवधि पामी मे तीन करण करै छै । इत्यादि । इसके अंत में रचनाकाल इस प्रकार दिया गया है
संवत सतर छिहोतरै मन सुद्ध फागण मास, ___मोटे कोट मरोट मां, वसतां सुख चौमास । इसमें खरतरगच्छ के जिनचंद, ज्ञानधर्म, राजसागर आदि का उल्लेख करके लिखा है-----
.. तास सीस आगम रुची जैन धर्म को दास,
देवचंद आनंदमय कीनौ ग्रंथ प्रकाश । १. मोहनलाल दलीचन्द देसाई-जैन गुर्जर कवियो भाग ५ पृ. २३२-२५६
(न०सं०)।
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