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नित्यलाभ
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यह चौबीसी 'चौबीसी बीशी संग्रह' में प्रकाशित है।
महावीर पंच कल्याणकनु चोढालियुं अथवा स्तवन (सं० १७८१ सूरत) यह रचना जैन संज्झाय माला, भाग दो में प्रकाशित है।
चंदनबाला संज्झाय (सं० १७८२ आश्विन वदी ६, रवि, सूरत) यह भी जैन संज्झाय माला, भाग दो में प्रकाशित है।
मुर्खनी संज्झाय भी जैन संज्झाय माला में प्रकाशित है।
सदेवंत सावलिंगा रास ( २४ ढाल सं० १७८२, ८९? ), महाशुक्ल ७, बुध, सूरत) का आरम्भ इस प्रकार हुआ है--
सकल सुख संपतिकरण, गुणनिधि गोडी पास ।
पदकंज प्रणमु तेहना, प्रेमधरी सुविलास । कवि ने यत्र तत्र कथा और उपदेश के साथ साहित्य को भी संयोजित किया है और गुरु का महत्व बताते हुए वह काव्यात्मक ढंग से कहता है ---
रसिया विण शृगाररस, नवरस विना बखाण,
लवण विना जिम रसवती, तिम गुरु बिना पुरुष अजाण । इसमें शील का महत्व सदावत्स सावलिंग की वार्ता के माध्यम से व्यक्त किया गया है। कवि ने सहृदय और अनाड़ी का अंतर बताते हुए आगे लिखा है
मधुकर सम जे नर कह्या, ते जाणे रसभाव,
स्यूजाणे मूरख बापडा गोल बोल एक दाव।" कुकणविजय नगर में सालिवाहन नामक प्रतापी राजा राज्य करता था। उसकी रानी गणमाला का पुत्र सदाबत्स बड़ा सुन्दर था। वहाँ के मन्त्री पद्म और उसकी पत्नी पद्मा की रूपवती कन्या सावलिंगा थी। इन्हीं के चरित्र का वर्णन इसमें किया गया है। गुरुपरम्परा इसमें भी वही है जो अन्य ग्रन्थों में इन्होंने पहले बताई थी। रचनाकाल यह है--
संवत सत्तर से व्यासीइ (नेवासी य) सुन्दर माधव मासे रे, सुद सातम बुधवार अनोपम, पूरण थयो सुविलासे रे।
१ देसाई, भाग ५, पृ० २९४-२९८ (न० सं०)
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