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भगवतीदास
३१९ पार्श्व प्रार्थना-आनंद को कंद किधौं पूनम को चंद किधी,
देखिए दिनंद ऐसो नंद अश्वसेन को, करम को हरै फंद भ्रम को करै निकंद, चूरै दुख द्वन्द्व सुख पूरै महा चैन को। सेवत सुरिंद गुन गावत नरिंद भैया, ध्यावत मुनिंद तेहू पावै सुख ऐन को, ऐसो जिनचंद करे छिन में सूछंद सूतौ,
ऐक्षित को इंद पार्श्व पूजों प्रभु जैन को।' मन संसार के विविध विषयों में भटकता है, उसे चेतावनी देते हुए कवि कहता है--
आँख देखै रूप जहाँ दौड़ तू ही लागे तहाँ; सूने जहाँ कान तहाँ त ही सूने बात है। जीभ रस स्वाद धरै ताको तँ विचार कर,
नाक सूंघे बास तहाँ तू ही विरमात है । काम के प्रकोप से बचाने की प्रार्थना भैया ने बड़े अनुनयपूर्वक जिनेन्द्र से की है, यथा -...
जगत के जीव जिन्हें जीत के गुमानी भयो, ऐसो कामदेव एक जोधा जो कहायो है, ताकेशर जानियत फूलनि के वृन्द बहु, केतकी कमल कुन्द केवरा सुहायो है। मालती सुगन्ध चारु बेलि की अनेक जाति, चंपक गुलाब जिन चरण चढ़ायो है । तेरी ही शरण जिन जासे न वसाय याको,
सुमत सो पूजे तोहि मोहि ऐसो भायो है। नाम महिमा, णमोकार महिमा. सम्यक्त्व महिमा पर यत्रतत्र कवि ने अनूठी भावव्यंजनाएँ की हैं जिनसे उनके कवि रूप की मनोरम झाँकी दिखाई देती है और वे एक श्रेष्ठ कवि सिद्ध होते हैं, एक उदाहरण--
स्वरूप रिझवारे से सुगुण मतवारे से,
सुधा के सुधारे से सुप्रमाण दयावंत हैं, १. डा० प्रेमसागर जैन--हिन्दी जैन भक्तिकाव्य और कवि, पृ० २६८
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