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भावप्रमोद
३९७ भावप्रमोद-आप खरतरगच्छीय जिनराजसूरि7 भावविजय 7 भावविनय के शिष्य थे। इनकी प्रमुख रचना 'अजापुत्र चौपइ' सं० १७२६ आसो शुक्ल १० बीकानेर में रची गई। इसमें अजापुत्र के धर्म कर्म का महत्व बतलाया गया है, यथा
अजापुत्र धरमै करी, पांमी लील विस्तार, ___ एक थी सुणज्यो सहू, हरष धरी उल्लास ।
यह रचना चन्द्रप्रभु चरित पर आधारित है। रचनाकाल इस प्रकार लिखा है
संवत सतरे छविसमे आसू मास उदारो रे,
सुकल पक्ष दसमी दिन अ, ग्रंथ कीधो सुखकारो रे । इसकी प्रारंभिक पंक्तियाँ प्रस्तुत हैं
पारस प्रणमुं सदा, सुख संपत दातार,
दायक सकल जगति मुगत रमणिका दातार । गुरु परंपरान्तर्गत धरमसिंह के पुत्र जिनराज सूरि तथा उनके शिष्य-प्रशिष्य भावविजय और भावविनय का सादर स्मरण किया गया है। यथा खरतरगछ महिमानिलो जुगवर श्री जिनराजो रे,
वादि गजकटा भंजणो, सकल भंजणो सिरताजो रे । इत्यादि । यह रचना शाहजहाँ के शासनकाल में की गई थी। रचना स्थान बीकानेर बताया गया है। इसमें युग प्रधान जिनचंदसूरि का भी उल्लेख है । अंत में कवि कहता है कि यह दृष्टांत नवनिधि दायक है।
ओ दृष्टांत सुहावणों, सुणतां नवनिधि थाय रे,
भाव प्रमोद पाठक कहे, श्री संघ नै सुखदाई रे ।' श्री अगरचंद नाहटा ने इस रचना का नामोल्लेख करके रचनाकाल दे दिया है।
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भावरत्न ---(भावप्रभसूरि) पौणिमागच्छीय चन्द्रप्रभसूरि की १. 'मोहनलाल दलीचन्द देसाई-जैन गुर्जर कवियो, भाग ३, पृ० १२३६-३७
(प्र०सं०) और भाग ४, पृ० ३६५-३६६ (न०सं०)। २ अगरचन्द नाहटा---परंपरा पृ० १०७ ।
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