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मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास 'ए देसी' और अन्यों का प्रयोग किया गया है। टेक द्वारा भी गेयता लाने का सफल प्रयोग किया गया है। उदाहरणार्थ दो पंक्तियाँ देखें
यतीश्वर जीभ बड़ी संसार जपै पंच नवकार, जीभहिं तें सब जीतिये जी, जीभहिं तें सब हार, जीभहिं तें सब जीव के जी, कीजतु हैं उपगार ।
यतीश्वर जीभ बड़ी संसार । इत्यादि सूआ बत्तीसी (सं० १७५३) यह भी आध्यात्मिक रूपक काव्य है, और ब्रह्मविलास में पृ० २६७ से २७० पर संकलित है। इसमें आत्मा को सूआ के रूप में चित्रित किया गया है और गुरुमंत्र महिमा बताई गई है; वही जीव को दुर्गति से बचाता है। इनकी कुछ रचनाओं के नमूने और विवरणों से यह विदित हो गया कि ये श्रेष्ठ कवि और रूपककार तथा आध्यात्मिक कवि थे। भाषा और छंदों के सक्षम प्रयोक्ता थे। स्वप्न बत्तीसी, मन बत्तीसी, वैराग्य पचीसिका आदि छोटी रचनायें भी संकलित हैं। इसमें परमात्मशतक अपेक्षाकृत बड़ी और उल्लेखनीय है। सभी रचनाओं की भाषा ढूढाड़ी या ब्रजमिश्रित मरुगुर्जर है।
भवानीदास--आपके गुरु माना जी श्वेताम्वर साधु थे। इनकी रचनाओं के आधार पर अनुमान किया जाता है कि ये आगरा के रहने वाले थे। गरु माना जी से इनकी सर्वप्रथम भेट सं० १७८३ में हुई थी। इन्होंने अपनी रचना 'जीव विचार भाषा' में गुरु माना जी का स्वर्गवास सं० १८०९ पौष बदी अष्टमी बताया है, जीवविचार भाषा का रचनाकाल सं० १८१० कार्तिक शुक्ल १० है। ___इनकी साहित्यिक रचनावधि सं० १७९१ से १८२८ तक मानी जाती है। इनकी अधिकांश रचनाएँ जिनेन्द्रभक्ति से संबंधित हैं । कुछ कृतियों में जैनमत के सिद्धान्तों की चर्चा है। इनके रचनाओं की भाषा शुद्ध हिन्दी है; उस पर राजस्थानी या गुजराती का प्रभाव प्रायः नहीं के बराबर है। अध्यात्म बारहमासा और चेतन हिण्डोलना जैसी रचनाओं पर बनारसीदास की अध्यात्म परंपरा का प्रभाव परिलक्षित होता है। १. डा० प्रेमसागर जैन --हिन्दी जैन भक्तिकाव्य और कवि पृ० २६८-७६
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