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मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
बंगलादेश की गजल और ब्रह्मबावनी स्वच्छ हिन्दी में रचित अधिक प्रसिद्ध रचनायें हैं इनका विवरण-उद्धरण प्रस्तुत किया जा रहा है।
ब्रह्मबावनी (सं० १८०१ कार्तिक शुक्ल २, मकसुदाबाद) आदि-- आदि ओंकार आप परमेसर परमजोति,
अगम अगोचर अलखरूप गायो है । रचनाकाल-संवत अठार से अधिक अंक काती मास,
पख उजियारै तिथि द्वितीया सुहावनी पुर पैं प्रसिद्ध मखसुदाबाद बंग देश,
जहाँ जैन धर्म दया पतिक को पावनी । आपकी प्रायः सभी रचनायें मकसुदाबाद (मुर्शिदाबाद) बंगदेश में लिखी गई। लगता है कि मुनि निहालचंद्र अधिकतर बंगला देश में ही रहे और अन्ततः उन्होंने बंगलादेश की गजल लिख डाली। गजल काव्यरूप और खड़ी बोली हिन्दी का भाषा रूप में प्रयोग भी बंगलादेश के कारण सम्भव लगता है। ब्रह्मबावनी की कुछ पंक्तियाँ नमूने के तौर पर उद्धृत कर रहा हूँ--
हम में दयाल कैके सज्जन विसाल चित्त, मेरी अक वीनती प्रमांन करि लीजियौ। मेरी मतिहीनता ते कीन्हौं वाल ख्याल इह, अपनी सुबुद्धि ते सुधार तुम दीजियौ । पौन के स्वभाव तें प्रसिद्ध कीज्यौ ठोर ठोर, पन्नग स्वभाव अकचित्त में सुणीजियौ अलि के स्वभाव ते सुगंध लीज्यौ अरथ की,
हंस के स्वभाव है के गुन को गहीजियौ ।' नवतत्व भाषा (सं० १८०७ माघ शुक्ल ५ मकसुदाबाद)
बंगालादेश की गजल (गा० ६५) आदि-- सारद सद्गुरु प्रणम्य कर, गवरी पुत्र मनाय,
गजल बंगालादेस की, परगट लिखी बनाय । बंगला देश का वर्णन करता हुआ कवि लिखता है-- १. भी देसाई-भाग ५, पृ० ३६०-३६२ (न०सं०)
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