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मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास यह रचना औरंगजेब के शासनकाल में की गई। इसमें छत्रसाल का भी वर्णन है, यथा--
छत्रसाल भुवपाल को राजत राज विशाल,
सकल हिन्दु जग जाल में मनौ इन्द्र दुतिजाल । आगे किसी सकलसिंघ का भी उल्लेख है जो शहर सकतपुर के थे। रचनाकाल संवत सत्रा सैकरा पैसठ परम पुनीत,
___ करि बरनन यहि ग्रंथ की छइ चरननि करि मीत । कवि वंशीधर कपड़ा खरीद का दस्तूर बताते हैं--
जित रुपैया मोल को गज प्रत जो पट लेइ, गिरह एक आना तिते लेख लिखारी देइ । आना ऊपर हौय गज प्रति रुपया अंक, तीन दाम अठ अंस बढ़ ग्रज प्रति लिखे निसंक ।'
ब्रह्मदीप-आपकी दो रचनायें प्राप्त हैं 'अध्यात्म बावनी' और मनकरहा रास । इनकी हस्तप्रति सं० १७७१ की प्राप्त है इसलिए रचनाएँ इससे कुछ पूर्व की होंगी। इनके अलावा कुछ स्फुट पद भी मिलते हैं।
अध्यात्म बावनी या ब्रह्म विलास बड़ी रचना है। इसमें ७७ दोहा चौपाई छन्द हैं। इसके मंगलाचरण में अरहंतों और सिद्धों की वंदना है, तत्पश्चात् नागरी लिपि के वर्णानुक्रम से आत्मा, परमात्मा, मोक्ष और सहज साधना आदि का पद्यबद्ध वर्णन किया गया है। आत्मतत्व की खोज करने का संकेत करता हुआ एक जगह कवि ने लिखा है -
नना नहि कोई आपणौ, घर परियणु तणु लोइ,
जिहि अधारइ घटि बसै, सो तुम आपा जोइ । अन्त--ऊंछर धातु न विषये किंचित ब्रह्म विलास,
इति ब्रह्मदीप कृत अध्यात्म बावनी समाप्त । मनकरहा रास (रचनाकाल सं० १७७१ से पूर्व)
इसमें मन रूपी करभ (ऊँट) को भव बन में उगी हुई विषबेलि को चखने से मना किया गया है। करभ का रूपक जैन कवियों में राज१. सम्पादक डा० कस्तूरचन्द कासलीवाल-राजस्थान के जैन शास्त्रभण्डारों
की ग्रन्थसूची, भाग ३, पृ० १७०-७१ ।
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