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मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
प्रसंग में अधिक रमा है इसलिए उसने दूसरी रचना नेमजी की लहरि भी उसी प्रसंग पर रची है । शेष गीत मार्मिक किन्तु छोटे हैं जिनमें विभिन्न राग-रागनियों का प्रयोग करके उनकी गेयता को परिपुष्ट किया गया है । खेद है कि इस सरस एवं भावुक गीतकार के गीतों का उद्धरण उपलब्ध नहीं हो सका, केवल काव्य-प्रसंग और ढालों तथा राग रागनियों के प्रयोग की जानकारी के आधार पर ही उनकी मार्मिकता तथा गेयता का अनुमान किया गया है ।"
बिहारीदास - आप आगरा के रहने वाले थे और प्रसिद्ध जैन कवि द्यानतराय के गुरु थे । उस समय आगरा में दो मुख्य विद्वान् थे एक बिहारीदास, दूसरे मानसिंह जौहरी थे, इनकी शैली चलती थी । वे स्वयं अच्छे कवि थे और कविता में अपना नाम बिहारी या कहीं कहीं बिहारीलाल लिखते थे । ये हिन्दी के प्रसिद्ध कवि सतसैयाकार बिहारी से पूर्णतया भिन्न थे । इस नाम के कई अन्य कवि भी हो गये हैं जिनमें एक ओरछावासी बिहारीलाल कायस्थ थे, दूसरे का उल्लेख नागरी प्रचारिणी की खोज रिपोर्ट की द्वितीय त्रैमासिक रिपोर्ट में हुआ है, उन्होंने सं० १८२० में 'नखशिख रामचन्द्रजी' की रचना की है । तीसरे बिहारीलाल 'हरदौल चरित्र' सं० १८१५ के लेखक हैं । चौथे हरिराम दास के शिष्य बिहारीदास थे जिन्होंने सं० 'निसाणी की रचना की । ये सभी १९वीं शती के पूर्वार्द्ध के रचनाकार थे । प्रस्तुत विहारीलाल १८वीं (वि०) शताब्दी के पूर्वार्द्ध के कवि थे क्योंकि द्यानतराय का जैनधर्म की तरफ झुकाव सं० १७४६ में इन्हीं की प्रेरणा से हुआ माना जाता है अर्थात् तब तक ये पर्याप्त प्रौढ़ और प्रसिद्ध हो चुके रहे होंगे ।
१८३५ में
आपने संबोध पंचाशिका, जखड़ी, जिनेन्द्र स्तुति और आरती नामक रचनाएँ की हैं | संबोध पंचासिका का अपरनाम अक्षर बावनी भी है । इसका रचनाकाल सं० १७५८ कार्तिक कृष्ण १३ है । इसमें ५० पद्य हैं जो विविध ढालों में ढालबद्ध है । इसका आरम्भ देखिएऊंकार मझार पंच परमपद बसत है, तीन भवन मैं सार वंदौ मनवचकायकै;
१. सम्पादक अगरचन्द नाहटा - राजस्थान का जैन साहित्य, पृ० २१९
और २२५ ।
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