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प्रीतिविजये
२९५ नाभिनंदन नाभिनंदन रीषभ जिनराय, मरुदेवी माता उपरि, राजहंस सम स्वामी सोहइ,
नयरी विनीता राजा ओ, वृषभ लंछन जसपाय मोहइ ।' आपने ज्ञातासूत्र १९ अध्ययन नामक दूसरा ग्रन्थ कब लिखा, इसका पता नहीं लग पाया। इसकी प्रारम्भिक पंक्तियां निम्नांकित हैं
श्री श्रुत देवी नमी करी जी, ज्ञातासूत्र मझारि,
उगणीसे अध्ययन जे कह्या जे, कहिसु तास अधिकार। इसमें जम्बू केवली और सोहम स्वामी का ज्ञातासूत्र के सम्बन्ध में ज्ञानवर्द्धक प्रश्नोत्तर है। इसकी अन्तिम पंक्तियाँ आगे दी जा रही हैं
जी हो दिसा लेइ इम साधु जीलाला, विषय न रांचे जेह, जी हो अरचनीक सहु संघ मां लाला, पामस्ये सुख अछेह । जी हो अध्ययन उगणीस यो कहिउ लाला, ज्ञातासूत्र मझारि, श्री हर्षविजय कविराज नो लाला, प्रीतिविजय जयकार ।।
प्रीतिसागर—ये प्रीतिलाभ के शिष्य थे; इन्होंने ऋषिदत्ता चौपई की रचना सं० १७५२ जेष्ठ शुक्ल २, रविवार को राजनगर में और धर्मबुद्धि पापबुद्धि चौपई की रचना सं० १७६३ उदयपुर में की।' आप खरतरगच्छीय नयसुन्दर>दयासेन>प्रीतिविजय>प्रीतिसुन्दर के गुरुभाई प्रीतिलाभ के शिष्य थे। यह परम्परा कवि ने अपनी रचना ऋषिदत्ता चौपई में बताई है। इनमें कवि ने जिनरंग, जिनराज का भी वंदन नयसुन्दर आदि गुरुओं के साथ किया है और प्रीतिलाभ का उल्लेख करके कहा है
तसु अन्तेवासी प्रीतिसागर रच्यो जी, संबंध ऋषिदत्ता नाम;
१. मोहनलाल दलीचंद देसाई--जैन गुर्जर कवियो, भाग ३, पृ० ३८०
(न०सं०) २. वही, भाग ३, पृ० १२३८-३९ (प्र०सं०) और भाग ४, पृ० ३८०-३८१
(न०सं०) ३. अगरचन्द नाहटा--परंपरा पृ० १०९
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