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मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
इसकी काव्यभाषा एवं काव्यत्व का नमूना उपस्थित करने के लिए चौपइ की कुछ प्रारंभिक पंक्तियाँ देखिये-
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पुरिसादाणी पास जिण, नित समरतां नाम, गोड़ी घणी गुण गावतां महियल मोटी मांग | जेहनो सासण जाणी वर्धमान सुखकार, जसु पद पंकज नित नमै, इंद्र चंद्र सुविचार |
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पुण्यदत्त विवहारनी सुभद्रा तेहनी नारि, सील प्रभाव सुख थया, ते सुणज्यो अधिकार । तीन खंडे तेहनी कहिस चोपई सार, दान दीयौ पहिलै भवै मोटा मोहिक च्यार । '
इस रचना का आधार शील तरंगिणी ग्रन्थ है । इसमें शीलपालन का माहात्म्य बतलाया गया है ।
आपकी दूसरी प्रसिद्ध कृति 'गजसुकुमार चौपाई' (२५ ढाल ४२३ कड़ी) सं० १७८६ पौष शुक्ल २ गुरुवार को धरणावस में ही पूर्ण हुई थी इसकी कथा जैन कथा साहित्य में अत्यधिक लोकप्रिय और प्रसिद्ध है । अनेक कवियों ने इस आख्यान को अपनी रचना का आधार बनाया है । इसका मौलिक आधार कल्पसूत्र है । इसमें गजसुकमाल के उच्च साधु चरित्र का वर्णन किया गया है। मंगलाचरण पहले दिया जा रहा है-
जिणवर नै प्रणमी करी, सिद्ध यथा छै तेह, तेहना पय जुग वंदतां, उपजै भाव अछेह | गज सुकुमाल की चौपइ जादवा नो अधिकार, अंतकृत थयो केवली ते सुणज्यो नरनारि ।
रचनाकाल
संवत र पर्वतमुनि आँखे इंदु पिण सहुनी साखै; पोस शुक्ल पक्ष द्वितीया जाणौ, गुरुवार तेप बखाणों जी ।
इसमें कवि ने स्वयं को पुण्यहर्ष का प्रशिष्य एवं शांति कुशल का शिष्य बताया है ।
१. मोहनलाल दलीचन्द देसाई - जैन गुर्जर कवियो, भाग ५, पृ० ३२३-३२९ ( न० सं० ) ।
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