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________________ मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास इसकी काव्यभाषा एवं काव्यत्व का नमूना उपस्थित करने के लिए चौपइ की कुछ प्रारंभिक पंक्तियाँ देखिये- ३०२ पुरिसादाणी पास जिण, नित समरतां नाम, गोड़ी घणी गुण गावतां महियल मोटी मांग | जेहनो सासण जाणी वर्धमान सुखकार, जसु पद पंकज नित नमै, इंद्र चंद्र सुविचार | X X X पुण्यदत्त विवहारनी सुभद्रा तेहनी नारि, सील प्रभाव सुख थया, ते सुणज्यो अधिकार । तीन खंडे तेहनी कहिस चोपई सार, दान दीयौ पहिलै भवै मोटा मोहिक च्यार । ' इस रचना का आधार शील तरंगिणी ग्रन्थ है । इसमें शीलपालन का माहात्म्य बतलाया गया है । आपकी दूसरी प्रसिद्ध कृति 'गजसुकुमार चौपाई' (२५ ढाल ४२३ कड़ी) सं० १७८६ पौष शुक्ल २ गुरुवार को धरणावस में ही पूर्ण हुई थी इसकी कथा जैन कथा साहित्य में अत्यधिक लोकप्रिय और प्रसिद्ध है । अनेक कवियों ने इस आख्यान को अपनी रचना का आधार बनाया है । इसका मौलिक आधार कल्पसूत्र है । इसमें गजसुकमाल के उच्च साधु चरित्र का वर्णन किया गया है। मंगलाचरण पहले दिया जा रहा है- जिणवर नै प्रणमी करी, सिद्ध यथा छै तेह, तेहना पय जुग वंदतां, उपजै भाव अछेह | गज सुकुमाल की चौपइ जादवा नो अधिकार, अंतकृत थयो केवली ते सुणज्यो नरनारि । रचनाकाल संवत र पर्वतमुनि आँखे इंदु पिण सहुनी साखै; पोस शुक्ल पक्ष द्वितीया जाणौ, गुरुवार तेप बखाणों जी । इसमें कवि ने स्वयं को पुण्यहर्ष का प्रशिष्य एवं शांति कुशल का शिष्य बताया है । १. मोहनलाल दलीचन्द देसाई - जैन गुर्जर कवियो, भाग ५, पृ० ३२३-३२९ ( न० सं० ) । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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