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________________ पूर्णप्रभ ३०३ शत्रुंजयरास ( ७ ढाल ११७ कड़ी) इसकी रचना सं० १७९० फाल्गुन कृष्ण ८ मंगलवार को हुई थी । इसमें शत्रु जय तीर्थ का माहात्म्य बताया गया है । कतिपय उद्धरण आगे दिए जा रहे हैंमंगलाचरण --- आदिकरण अरहंत जी, सिद्धवंत गुणवंत । तेहना चरण नमी करी भयभंजण भगवंत । शेत्रुंज तीरथ सरीखो समवड नही कौ सार, मंत्र मांहि मोट्यो कह्यां, पंच परमेष्ठि नवकार । शेज महातम तिण कीयो, च्यार सतोतर जाण, धनसूरि सूरे उचर्यो जिणवर मुंख नी वांण । रचनाकाल - संवत शून्य निधि मुनि सही रे लाल इंदु षिण फागुन मास रे, कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथै रे लाल, भृगुवार कीयो रास रे । जयसेन कुमार प्रबंध अथवा रास ( रात्रिभोजन विषये, ४ खंड ३७ ढाल ७६२ कड़ी ) की रचना सं० १७९२ कार्तिक धनतेरस के पर्व पर वाली में पूर्ण हुई । प्रारंभ में गुरुवंदना करता हुआ कवि कहता हैगुरु मोटा गुरु देवता, गुरु विण घोर अंधार, सुगुरु तणे सुपसाद थी, लहीओ अक्षर सार | कवि इससे पहले पार्श्व और सारदा की वंदना की है जिससे सुंदर अभिव्यंजना शक्ति का वरदान मांगा है। रात्रिभोजन की विगर्हणा करता हुआ कवि कहता है पुहर च्यारे दिवस रे, अने नही धायंति, रात्रिभोजन जे करे, मानव राक्षस कहति । च्यारे खंडे चोपइ करिसु अति विस्तार; जयसेन नामा कुमर नी रात्री भोजन अधिकार | इसकी कथा का सूत्र वृहद् नंदीसूत्र से लिया गया है । रचनाकाल देखिये -- नयण निधि मुनि संख्या आंणो, इंदु संवच्छर टाणों जी, कार्तिक मासे पख्य दीवाली, धनतेरस पिण निहाले जी । चहुपाणवटी जालोरी देसे, तिहां वाली गाम वसे से जी, धणे आग्रहे चौमास लीधी, चोपइ तिहां कण कीधी जी । ' १. मोहनलाल दलीचन्द देसाई - जैन गुर्जर कवियो, भाग ५, पृ० ३२२-३२९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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