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________________ ३०४ मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास इस रचना की अंतिम पंक्तियाँ विषय के परिचयार्थ दी जा रही हैं दान धरम मोटो तिहां दीप, शील विशेष जग जीपै जी, तप तणा अधिकार अति ताजा, भाव विशेष तिहां राजै जी । धनुर्विध धर्म थी अधिको जांणे, रयणभोजन फल विशेषे आंणो जी, पूरणप्रभ हिव इण परि भासे, सुख संपद लील विलासे जी।' प्रेमचंद-आप कनकचंद उपाध्याय के शिष्य थे। आपने आबू राज स्तवन अथवा आदि कुमार स्तवन की रचना सं० १७७९ ज्येष्ठ शुक्ल द्वितीया बुधवार को पूर्ण की। यह ३४ कड़ी का स्तवन है। रचनाकाल से संबंधित पंक्तियाँ इस प्रकार हैं संवत सतरे उगलासीइ, बीजारे बुधवार रे वार, जेठ महीने जुगत सुंगायो श्री आदि कुमार रे, लाल । कनकचंद उवझाय नो, वाचक कहे प्रेमचंद रे, लाल, वंदे पूजे भाव सू, पाले परमाणंद रे लाल ।' प्रेमानंद--आप गुजराती भाषा के प्रसिद्ध एवं श्रेष्ठ कवि हैं परन्तु जैनेतर हैं। श्री देसाई ने आप की तीन प्रमुख कृतियों का परिचय दिया है, तीनों प्रकाशित हैं फिर भी तीनों के कुछ उद्धरण उदाहरणार्थ दे रहा हूं। सुदामा चरित्र (सं० १७३८ श्रावण शुक्ल ३ भृगुवार) कवि ने आत्म परिचय में लिखा है वीरक्षेत्र बडोदरु गुजरात मधे ग्राम, चतुरवंशी ग्यात भ्राह्मण, कवी प्रेमानंद नाम । रचनाकाल-संवत सतर आडत्रीसा वरखे, सावण सुदी निधान, तिथी त्रिती भगवारे पदवंध करूं आख्यान । ऊदर नीमत करी सेतु गांम नंदन बार, नीदीपरा मांहां कथा कीधी जथा बुधी अनुसार । १. मोहनलाल दलीचन्द देसाई--जैन गुर्जर कवियो, भाग ३, पृ० १४५८-६४ (प्र० सं०) और भाग ५, पृ० ३२३-३२९ (न०सं०)। २. वही, भाग २, पृ० ५३६ (न०सं०) और भाग ५ पृ० ३०२ (न०सं०)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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