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________________ प्रेमानन्द ३०५ अभिमन्यु आख्यान-सं० १७२७, यह आख्यान महाभारत की अतिमार्मिक और सर्वज्ञात घटना अभिमन्यु वध पर आधारित है करी न आवे रुदन कीधे, पछे नाहा अरजुन ने वीस्वाधार, सावचीत थइ सखीसाची अ, भीम ने पूछे समाचार । केम पड़ीओ पुत्र माहारो? कुल बोल के तारु ? नाहासतां मुओ के नाम बोलु, के कोणे मारीओ ?' आपकी तीसरी रचना गुजराती तथा भारतीय साहित्य के प्रसिद्ध संत नरसिंह मेहता से संबंधित है, नाम है नरसिंह मेहतार्नु मामेरु, यह रचना सं० १७२८ आसो शुक्ल ९ रविवार को पूर्ण हुई थी। कवि प्रेमानंद नरसिंह मेहता को बड़े पूज्य भाव से देखते थे ओर उन्हीं की वेदना में यह मामेरु लिखा है। आदि-श्री गुरु गुणपत ने सारदा समरूं ते सुखदायक सदा, मन मुदै मांमेरु मेता तणु, प्रष्ण थायो तो हुंअ ज भणूं। मामेरु मेंता तणुं पदवंध करवा आस, नरसींह मेंतो नागर ब्राह्मण जूनागढ़ मा बास । रचनाकाल संवत १७२८ वरिसे आसु सुद नोम रवीवारे जी, पूरण ग्रंथ थयो ओ दिवसे, कहु ते बुध प्रकास जी । प्रेमराज-- आपका इतिवृत्त अज्ञात है। आपकी एक रचना 'वैदर्भी चौपाई' (१८२ कड़ी) सं० १७२४ से पूर्व की रचित प्राप्त है जिसका प्रारंभ इन पंक्तियों से हुआ है --- जिणधर्म माहि दीपता करी धरम स्युं रंग, रिदई सूरा जाणइं बहू, ढाल भणु मनरंग। रंग विण रस न आवसी, कविता करो विचार, नवरस आदि सिंगार रस ते आणु अधिकार । अंत -दान देइ चारित लीओ जी, हुतो तस जय जयकार, प्रेमराज गरु इम भणइ, मुगत गया ततकाल । १. मोहनलाल दलीचन्द देसाई-जैन गुर्जर कवियो, भाग ३ प० २१७६-७८ (प्र० सं०)। २. वही, भाग ३, पृ० २१७६-७८ (प्र० सं०)। २० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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