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________________ ३०६ गुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास इसमें दान का महत्व बताता हुआ कवि कहता हैश्री दान सुपात्रइ दीजीयइ, दानइ दोलति होइ, राजऋद्ध सुख पामीयइ, वेदरभी जिम जोइ । कठिन क्रिया ते करी, पोहती स्वर्ग आवास, वेदरभी गुण गावतां, पामइ लील विलास पहले श्री देसाई ने जैन गुर्जर कवियो के भाग ३ पृ० ३३४ पर इस रचना को लोकागच्छ के प्रेमकवि की रचना बताया था । द्वितीय संस्करण के संपादक श्री जयंत कोठारी का स्पष्ट विचार है कि यह कृति प्रेमकवि की नहीं अपितु प्रेमराज की है अतः यहाँ उन्हीं की रचना के रूप में इसे प्रस्तुत किया गया है । प्रेमविजय -- आप धर्मविजय के प्रशिष्य और शांतिविजय के शिष्य थे । आपकी एक 'चौबीसी प्राप्त है जिसकी रचना सं० १७६२ माघ शुक्ल २ महिसाणा में हुई। इसका प्रारम्भ इस मंगलाचरण से हुआ है श्री सरसति शुभमति विनवुं श्री गुरु प्रणमी पाय लाल रे, मरुदेवी नंदन गावतां माहरु तनमन नीरमल थाय लाल रे । इसकी अन्तिम पंक्तियाँ भी प्रस्तुत कर रहा हूँ जिनमें इसका रचनाकाल और गुरु का उल्लेख है संवत सतर बासठा वरसइ, माघ शुदि बीजा दिन सारी, महिसाणें चुमास रहीने, जिन स्तवना विस्तारी रे लाल | पंडित श्री धर्मविजय विबुधवर सेवक शांतिविजय शुभ सीस, तस चरण कमल पाय प्रणमतां, प्रेम पांमी सुजगीस रे, भवियण । बख्तावरमल - आपकी रचना जिनदत्त चरित का उल्लेख डॉ० लालचंद ने अपने ग्रंथ जैन कवियों के ब्रजभाषा प्रबन्ध काव्यों का अध्ययन में किया है किन्तु विवरण नहीं दिया है । इसमें १७००-१९०० १. मोहरलाल दलीचन्द देसाई - जैन गुर्जर कवियो, भाग ३, पृ० ३३४, १४००-१ तथा १५२४ और भाग ४, पृ० ३२८-३२९ (न० सं० ) । २. वहीं, भाग ३, पृ० १४१०-११ (प्र० सं० ) और भाग ५, पृ० २२४ (न० सं० ) । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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