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बख्तावरमल
तक की रचनायें हैं अतः निश्चित नहीं कि यह १८वीं शती की रचना हो इसलिए छोड़ दिया गया है।
बच्छराज - लोकागच्छ के लेखक, अन्य विवरण अज्ञात, आपकी रचना 'सुबाहु चौढालिया' सं० १७४९ बीकानेर (काकडा) में पूर्ण हुई । कवि ने स्वयं को ऋषि वछराज लिखा है अतः वह लोकागच्छीय होगा। अन्य विवरण या रचना का कोई उद्धरण उपलब्ध नहीं है।'
बधो (श्रावक)- आप पीपाडो जाति के श्रावक थे, आपका निवास स्थान सोजत नामक स्थान था। यह परिचय कवि ने अपनी रचना कुमतिरास अथवा संञ्झाय या प्रतिमा स्थापन गीत या महावीर स्तवन में स्वयं दिया है। इसमें सोजत नगर में स्थापित महावीर का स्तवन किया गया है, यथा---
सोजित मंडण वीर जिणेसर, वीनती करूं तुम आगे,
शुभ दृष्टे साहिब ने सेव्यां कुमति कदाग्रह भागे रे । आत्म परिचय देता हुआ कवि कहता हैसाह बधो ने जाते पीपाडो नगर सोजित नो वासी,
ओ तवन तव्यो सद्गुरु ने वयणे, थे छोड़ो कुमति नी पासी रे । रचनाकाल
संवत सतरें वरस चोबीसे, श्रावण सुदि छठ दिवसे,
श्री जिन प्रतिमा नुं दरसण करतां कमल रतन विकसे रे । इसकी प्रारम्भिक पंक्तियाँ निम्नवत् हैं -
श्री श्रुतदेव तणे सुपसायें प्रणमी सद्गुरु पाया, श्री सिद्धांत तणे अणुसारें, सीख देउं सुखदाया रे। २.
बाल - श्री मोहनलाल दलीचन्द देसाई ने इनकी एक रचना पाँच इंद्रिय संवाद (१५४ कड़ी) सं० १७५१ भाद्र शुक्ल २ का उल्लेख जैन १. मोहनलाल दलीचन्द देसाई--जैन गुर्जर कवियो, भाग ३, पृ० १३४७
(प्र०सं०) और भाग ५, पृ० ७५ (न०सं०)। २. वही, भाग ३, पृ० १२३३-. ४(प्र०सं०) और भाग ५ पृ० ३४१ ३४२
(न०सं०)।
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