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________________ ३०८ मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास गुर्जर कवियो में किया है। ठीक इसी तिथि की रचना भैया भगवती दास कृत पंचेन्द्रिय संवाद है जिसका रचनाकाल पंचेन्द्रिय संवाद के पद्य १५० पृ० २५२ पर सं० १७५1 दिया गया है। इसमें नाक, कान आँख, जीभ आदि इन्द्रियों के मानवीकरण में कवि को अच्छी सफलता मिली है। बाल कविकृत पाँच इंद्रिय संवाद में रचनाकाल पद्य सं. १५२ में इस प्रकार कहा गया है--(देखिये पद्य संख्या १५२) संवत सतरह अकानवे १७५१ नगर आगरे मांहि भादो सुदी शुभ दूज को, बाल ख्याल प्रगटाहि । इसके मंगलाचरण में कवि ने जिनराय और शिवराय की वंदना की है-- प्रथम प्रणमि जिनदेव कौं बहुरि प्रणमी शिवराय, साद्य सकल के चरण कौं प्रणमौं सीस नमाय । व्रजभाषा हिन्दी में मंगलाचरण प्रारम्भ किया गया है, लेकिन ढाल की भाषाशैली मरुगुर्जर है। ठीक इसी शैली में बालक' रामचन्द्र ने सीता चरित नामक प्रसिद्ध प्रबन्धकाव्य लिखा है। देसाई ने प्रस्तुत बालकवि कृत 'सीतारास' का नामोल्लेख किया है किन्तु विवरण उद्धरण नहीं दिया है। हो सकता है कि उक्त सीतारास बालक (रामचन्द्र) कृत सीताचरित्र ही हो और पाँच इंद्रिय संवाद भैया भगवतीदास कृत पंचेन्द्रिय संवाद नामक रचना हो, पर यह स्पष्ट नहीं है क्योंकि दोनों के पाठों के मिलान का अवसर मुझे नहीं मिला । नाक कहती है-- नाक कहै जग हुं बड़ो, बात सुणो सब कोई रे, नाक रहे पत लोक मा, नाक गये पत खोई रे। पाँच इंद्रियों के सम्बन्ध में आम धारणा है कि ये दुःख स्परूप हैं, यथा चली बात व्याख्यान में पाँचै इन्द्री दुख, त्यों त्यों अदुख देत हैं ज्यौं ज्यौं कीजै पुष्ट । १. मोहनलाल दलीचन्द देसाई-जैन गुर्जर कवियो भाग ५, पृ० १२५ । २. डा. लालचन्द जैन ----जैन कवियों के ब्रजभाषा प्रबन्धकाव्यों का अध्ययन, पृ० ७५-७८ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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