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मरुगुर्जर हिन्दो जैन साहित्य का बृहद् इतिहास यह कृति 'नमस्कार स्वाध्याय भाग ३' में प्रकाशित है। पहले देसाई ने इसका नाम चौबीसी चौढालियुं बताया था; किन्तु इसके कर्ता नेमचन्द हैं जिनका विवरण इससे पूर्व दिया जा चुका है।
नेमविजय --ये तपागच्छीय आचार्य हीरविजय सूरि की परम्परा में आणंदविजय>मेरुविजय>लावण्यविजय> लक्ष्मीविजय>तिलकविजय के शिष्य थे। आप इस शती के अच्छे साहित्यकारों में थे, आपकी प्रमुख रचनाओं का परिचय प्रस्तुत किया जा रहा है।
शीलवतीरास अथवा शीलरक्षाप्रकाशरास (६ खण्ड, ८४ ढाल, २०६१ कड़ी, सं० १७५०) का रचनाकाल कवि ने इस प्रकार कहा है--
सतिय शिरोमणि शीलवती नो, सांचो व्रत छे नगीना हे,
रास सम्पूर्ण सत्तर पचासे अखा त्रीज रसधार से है। मंगलाचरण की प्रारम्भिक पंक्तियाँ इस प्रकार हैं--
ऊंकार अक्षर अधिक जपता पातिक जंत,
अहनी अधिको को नही, शिवपुर आपै सन्त । इसकी रचना गच्छपति विजयरत्न सूरि के शासनकाल में हुई, यथा--
गच्छ चोरासी शिरोमण छाजे, तपगच्छ अधिक दिवाजे हे
गच्छपति श्री विजयरत्न सूरीन्दा, राज्ये रच्यो सुखकंदा हे । अन्त--भणे गणे जे रास रसाला, ते घर मंगलमाला हे,
नेमविजय सती गुण गाजे, ऋद्धि बृद्धि पद थाजे हे ।' यह रचना प्राचीन काव्य माला, बड़ोदरा से प्रकाशित है। नेमिबारमास (५८ कड़ी, सं० १७५४ माघ शुक्ल ८, रवि, दीववंदर) आदि- समरीइं सारद नाम सांचु, अह विना जाणीये सर्व कांच
ज्ञान विज्ञान ने ध्यान आपे, महिर नी लहिर अज्ञान कांपे । १. मोहनलाल दलीचन्द देसाई--जैन गुर्जर कवियो, भाग ५, पृ० ११६-११७
(न०सं०)।
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