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नेमचंद
२७७ हिन्दी जैन साहित्य में तीन नेमिचन्दों का नाम उल्लेखनीय है, जिनमें प्रथम नेमिचंद संस्कृत के साहित्यकार एवं आचार्य थे। इन्होंने आश्रमपत्तन (वर्तमान नाम केशोराय पाटन) नामक स्थान में बृहद् द्रव्य संग्रह एवं परमात्म प्रकाश की रचना संस्कृत में की थी, इस पर संस्कृत टीका सोमराज श्रेष्ठी के लिए ब्रह्मदेव ने नेमिचंद के साथ मिलकर लिखी थी। अनुमानतः ये १४-१५वीं शताब्दी के आचार्य थे। एक अन्य नेमिचन्द्र ने कर्मकाण्ड नामक ग्रंथ प्राकृत में काफी पहले लिखा था जिसकी टीका सुमतिकीति ने १७वीं शताब्दी में लिखा था। १९वीं शती में भी एक नेमिचन्द हुए हैं जिन्होंने कई पूजायें लिखी हैं। वे खण्डेलवाल जाति के वैश्य और जयपुर के निवासी थे।
नेमिचन्द्र I---१८वीं शताब्दी में एक दिगम्बर कवि नेमिचन्द्र हुए हैं। इन्होंने सं० १७७० में देवेन्द्रकीर्ति की जकड़ी लिखी।' आप आमेर में स्थापित मूलसंघ के शारदागच्छ के भट्टारक सुरेन्द्र कीर्ति के प्रशिष्य और जगतकीर्ति के शिष्य थे। ये खण्डेलवाल जाति के सेठीगोत्रीय श्रावक थे। इन्होंने अपने कारोबार से समय निकालकर साहित्य की अच्छी सेवा की। आपकी निम्नलिखित रचनायें जैन मन्दिर निवाई (टोंक) से प्राप्त हुई हैं - प्रीतंकर चौपई १७७१, नेमिसुर राजमति की लहरि, चेतन लहरि, जीव लहरि, जीव समोधन लहरि, विसालकीति को देहुरो, जखड़ी, कडखो, आसिक को गीत, नेमिसुर को गीत और पद संग्रह । इनके छोटे भाई का नाम झगडू था। इनके दो शिष्य थे डूगरसी और रूपचंद । प्रीतंकर चौपाई एक मौलिक खण्डकाव्य है । अन्य रचनायें विविध लोक विधाओं में रचित गेय गीत या पदादि हैं। डॉ० कस्तूरचन्द कासलीवाल ने इनकी एक अन्य महत्वपूर्ण कृति नेमीश्वर रास की खोज की है जिसकी रचना १७६९ में हुई; इसमें ३६ अधिकार और १३०८ छन्द हैं । यह एक चंपू रचना है। जिसमें गद्य और पद्य दोनों का यथास्थान प्रयोग किया गया है। डॉ० कस्तूरचंद कासलीवाल ने भट्टारक सुरेन्द्र कींति के शिष्य जगत् कीर्ति का विवरण देते हुए लिखा है कि इनके शिष्य नेमिचन्द्र अच्छे विद्वान् थे, ये वस्तुतः जगत्कीर्ति के शिष्य देवेन्द्रकीर्ति के शिष्य थे।
१. कामताप्रसाद जैन-हिन्दी जैन साहित्य का संक्षिप्त इतिहास, पृ० १८३ २. सम्पादक नाहटा मंडल-राजस्थान का जैन साहित्य, पृ० २१८
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