________________
२६४
मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद इतिहास
पढ़सी सुणसी जे नर कोय, ते नर स्वर्ग देवता होय । भूल चूक कहीं लिख्यो होय, नथमल क्षमा करो सब कोय |
यह रचना औरंगजेब के शासनकाल में चाटसू में रची गई जहाँ का हाकिम उस समय मदार खां था । उसके शासन में प्रजा सुखी और शांत बताई गई है, यथा
नौरंग साहि राज ते धरै, पौण छतीसो लीला करै । कहुं चोवा चंदन महकाय, कहूं अरगजा फल विकसाय । नगर नायका सोभा धरै, पानु नव रचित बोली करै । हाकिम है मदार खाँ सही, दुखी दलिद्री दीसै नहीं । इसमें चाटसू नगर का वर्णन विस्तार से किया गया है. सहर चाटसू सुवस वास, सिंह पुर नाना भोग विलास । नवसै कुँवा नव सै ठांय काल पोखरी कह्या न जाय । तामै बड़ा जगोली राव, सबै लोग देषण को भाव ।
X
X
X
छत्री चौतरा बैठक धणी, अर मसजद तुरकां की बणी । चहुंधा रूष वृक्ष चहुं छांय, पंथी देखि रहे विलमाय । धावणे अधिक बाजार, वैसे वणिक करें व्यापार । इसका प्रारम्भ इन पंक्तियों से हुआ है
प्रणमुं पंच परमेष्ठी सार, तिहूं सुमिरत पावै भवपार । दूजा सारद नैं विस्तरुं, बुधि प्रकास कवित्त उत्तरं । *
ર
इसकी भाषा सादी, सहज और सरल है जिस पर राजस्थानी का स्वाभाविक प्रभाव है ।
नयप्रमोद- - खरतरगच्छ के जिनचन्द सूरि की परम्परा में आप हीरोदय के शिष्य थे । इन्होंने सं० १७०९ में चित्रसंभूति संधि की रचना जैसलमेर में और सं० १७१३ में अरहन्नक प्रबन्ध की रचना १. सम्पादक डा० कस्तूरचन्द कासलीवाल -- राजस्थान के जैन शास्त्र भंडारों की ग्रंथसूची, भाग ३, पृ० २२७-२२९ ।
२. बही ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org