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मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास __ ऐतिहासिक जैन काव्यसंग्रह में संकलित गीत तीर्थयात्राओं के समय घरों में और यात्रा में गाए जाते थे। इनका विषय भक्ति है और इनमें प्रायः महापुरुषों का कीर्ति स्मरण है। इसलिए ये पापबंध के कारण नहीं अपितु पुण्य बन्ध हेतु लिखे और गाए जाते थे। इनमें राजनीतिक और धार्मिक इतिहास भी व्यक्त हुआ है। इनमें वणित घटनाओं का प्रमाण इतिहास में प्राप्त होता हैं। जैन साधुओं का सम्पर्क शासकों से अच्छा रहा । जिनप्रभ सूरि ने कुतुबुद्दीन, मुबारक शाह और मुहम्मद शाह को प्रभावित किया था। जिनदत्त सूरि ने सिकन्दरशाह लोदी को और जिनचन्द्र ने सम्राट अकबर को प्रभावित किया था। उसी प्रकार हीरविजय ने भी सम्राट अकबर का प्रबोधन किया था। ऐसे प्रभावक जैन साधुओं के जीवन और दर्शन से सम्बन्धित अनेक महत्वपूर्ण घटनायें इन गीतों में उपलब्ध हैं। जिनसुखसूरि और जिनभक्ति सूरि खरतरगच्छ की जिनप्रभसूरि की शाखा के साधु थे और धर्मवद्धन उर्फ धरम सी जिनभद्रसूरि की शाखा में हुए थे। अतः इन गीतों के लेखक धरमसी धर्मवर्द्धन उर्फ धरमसी से भिन्न हैं और महत्वपूर्ण ऐतिहासिक जैन गीतकार हैं।
धीरविजय - आप ऋषिविजय के प्रशिष्य एवं कुवरविजय के शिष्य थे। आपने सं० १७२७ से पूर्व 'चौबीसी' की रचना की; कुछ पंक्तियाँ नमूने के लिए प्रस्तुत है । महावीर स्तव (राग धन्यासी)
वीर जिणेसर वंदीइ, सासन नो सिरदार, जिनजी सिद्धारथ कुल सिंह लो, त्रिसला मात मल्हार, जिनजी। सकल वाचक मुगटामणि, श्री ऋद्धिविजय उवझाय,
तस बुध कुवर विजय तणो, धीरनि हो सुखदाय, जिनजी।' इसी प्रकार इसमें चौबीस तीर्थङ्करों की वन्दना की गई है।
नंदराम---आप जैनेतर कवि हैं। ये वैष्णव कृष्णभक्त कवि थे। अम्बावती निवासी बलिराम खण्डेलवाल के आप पुत्र थे, यथा---
नन्द खण्डेलवाल हैं अम्बावती को वासी,
सुत बलिराम गोत है रावत, मत हैं कृष्ण उपासी । १. मोहनलाल दलीचन्द देसाई-जैन गुर्जर कवियो भाग ३ पृ० १२३७-३८
(प्र० सं०)।
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