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मरुगुर्जर हिन्दा जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
देह देउरे मै लषो निरमल निज देवा, आप स्वरूपी आप मै अपनौ रस लेवा | देवीदास १८वीं शती के बुन्देली हिन्दी के जंन कवियों में श्रेष्ठ स्थान के अधिकारी हैं । '
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देवीसिह आप नरवर निवासी जिनदास के पुत्र थे । उस समय नरवर में छत्रसिंह का राज्य था । इन्होंने सं ० १७९६ में उपदेश सिद्धांत रत्नमाला नामक छंदोबद्ध एक रचना की है। इसकी पद्य संख्या १६८ दोहा, चौपाइ चौबोला आदि छंदों में है । यह ग्रन्थ मूलतः प्राकृत में नेमिचंद्र भंडारी का लिखा है । रचनाकाल इस प्रकार बताया गया है-
सत्रह से अरु छएनवै, संवत विक्रम राज, भादव वदि एकादशी शनि दिन सुविधि समाज । ग्रन्थ कियो पूरण सविधि नरवर नगर मझार, जे समझे याको अरथ ते पावै भवपार ।
यह रचना देवी सिंह ने एक माह आठ दिन में पूरी की थी जो इसके १६८वें दोहे से प्रकट है । आत्म परिचय देते हुए लिखा है-
महा कठिन प्राकृत की बानी, जगत मांहि प्रगटै सुख दानी | या विधि चिंता मनि सुभाषी, भाषा छंद मांहि अभिलाषी । श्री जिनदास तनुज लघुभाषा, खंडेलवाल सावरा साखा । देवी संघ नाम सव भाषे, कवित मांहि चिंता गनि राखे । सुख निधान नरवरपती छत्र्यसंघ अवतंस, कीरतिवंत प्रवीतमति राजत कूरम वंश । '
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दौलतराम पाटनी - ये बूंदी के रहनेवाले थे । इन्होंने सं० १७६३ में व्रतविधान रासो लिखा जिसमें जैन व्रतों का वर्णन और माहात्म्य है । इन्होंने सम्भवतः छहढाला की भी रचना की है ।
१. श्रीमती विद्यावती जैन, अध्यक्ष हिन्दी विभाग म० म० महिला महा विद्याला, आरा का लेख - 'हिन्दी जैन साहित्य का एक विस्मृत बुन्देली कवि देवीदास' से साभार ।
२. कामता प्रसाद जैन - हिन्दी जैन साहित्य का संक्षिप्त इतिहास पृ० १८२ ३. सम्पादक कस्तूरचन्द कासलीवाल -- राजस्थान के जैन शास्त्र भंडारों की ग्रन्थसूची भाग ४ पृ० २५ ।
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