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मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास पं० पन्नालाल बाकलीवाल ने वृहज्जिन वाणी संग्रह में पूजासाहित्य को संकलित किया है जो भारतीय ज्ञानपीठ से पूजांजलि में छपा है। इसमें देवशास्त्र गुरुपूजा, बीसतीर्थकर पूजा, दस लक्षण धर्म पूजा, सोलह कारण पूजा, अष्टाह्निका पूजा, सिद्धचक्र पूजा और सरस्वती पूजा आदि विशेष रूप से प्रचलित है। पंचमेरु पूजा में गेयता और लय का उदाहरण देखिए ---- सीतल मिष्ट सुवास मिलाय, जलसौं पूजौ श्री जिनराय ।
महासुख होय, देखे नाथ परम सुख होय । पाँचौ मेरु असी जिन धाम, सब प्रतिमा को करौ प्रणाम ।
महासुख होय, देखे नाथ परम सुख होय । स्तोत्र साहित्य-आपने स्वयंभू स्तोत्र, पार्श्वनाथ स्तोत्र और एकीभाव स्तोत्र की रचना की है, जिनमें से दो मौलिक हैं और तीसरा स्तोत्र वादिराज के संस्कृत स्तोत्र का भावानुवाद है। स्वयंभू स्तोत्र में २४ पद है, प्रत्येक तीर्थंकर की वंदना में एक एक पद लिखा गया है। पार्श्वस्तोत्र की दो पंक्तियाँ नमूने के रूप में उद्धृत की जा रही हैं--
दैत्य कियो उपसर्ग अपार, ध्यान देखि आयो फनिधार, गयी कमठ शठ मुख कर श्याम, नमो मेरु सम पारस स्वाम ।
आरती साहित्य - आपकी पाँच आरतियाँ जिनवाणी संग्रह में प्रकाशित हैं। प्रथम पंच परमेष्ठी, द्वितीय जिनराज, तृतीय मुनिराज, चतुर्थ महावीर और पंचम आत्मराम की आरती है। द्वितीय आरती की दो पंक्तियाँ देखें---
सुरनर असुर करत तुम सेवा, तुमही सब देवन के देवा,
आरति श्री जिनराज तिहारी, करम दलन संतन हितकारी। छोटा समाधिमरण में १० पद्य है, यह वृहज्जिनवाणी में प्रकाशित है। धर्मपच्चीसी (२७ पद्य) जिनवाणी संग्रह में प्रकाशित है। एक स्थल पर कवि ने धर्म के संबंध में काव्यात्मक पंक्तियाँ लिखी हैं यथा
चंद विना निश, गज बिन दंत, जैसे तरुण नारि बिन कंत,
धर्म बिना त्यौ मानुष देह, तातें करिये धर्म सनेह ।' १. डा० प्रेमसागर जैन-हिन्दी जैन भक्तिकाव्य और कवि पृ० २७८
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