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मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
यह रचना जीवदया का महत्व व्यंजित करती है । प्रबोध चिंतामणि अथवा मोह विवेक नो रास ( ६ खण्ड, ७६ ढाल, सं १७४१ मागसर शुक्ल १०, मुलतान
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जयशेखर सूरि ने यह ग्रन्थ संस्कृत में लिखा था, इसका गुर्जर में रूपांतरण 'त्रिभुवन दीपक प्रबंध नाम से उन्होंने किया था, उसी पर आधारित यह रास धर्ममंदिर ने लिखा है । इसका प्रारम्भ इस प्रकार हुआ है-
चिदानंद चित्तचाह शुं, प्रणमु प्रथमोल्लास, तेजतमस जीत्यां जिणे, लोकालोक प्रकास । जयशेखर सूरि के बारे में कवि कहता है-
प्रबोध चिंतामणि ग्रंथ प्रसिद्धो, श्री जयशेखर कीधो जी, मोह विवेक तणा अधिकारा गीर्वाण वाणी सारा जी ।
रचनाकाल
सत्तर से अकताले वरषे उज्वल पक्ष शुभ दिवसे जी, मागसिर दसमी स्थिर शुभ योगा, चौपाई यह सुप्रयोगा जी । "
यह रचना जैनकाव्य दोहन पृ० २२८ से ३६४ पर प्रकाशित है । परमात्म प्रकाश चौपाई अथवा ज्ञान सुधा तरंगिणी चौपाई (२ खण्ड, ३२ ढाल सं० १७४२ कार्तिक शुक्ल ५ गुरु, जैसलमेर)
आदि-
परम ज्योति प्रणम् सदा परमातम परकाश, चिदानंद लहरी जलधि अनुपम सुख निवास ।
रचनाकाल -
नयन वेद मुनि चंद्रमा ( १७४२) ओ संवत विक्रम जाणो रे, काती सुदी पंचमी दिनई, गुरुवारइ सुभ जानो रे ।
अंत-- मंगल कारण मानज्यो से अध्यात्म अधिकारो रे, धर्ममंदिर वाचक कहे, सुणतां सुख संतति सारो रे ।
परमात्म प्रकाश का रचनास्थान पहले देसाई ने मुलतान बताया था। इसमें साह वर्द्धमान और मिट्ठूमल भणसाली का उल्लेख है जो मुलतान के निवासी थे, सम्भवतः इसी कारण रचनास्थान मुलतान १. मोहनलाल दलीचन्द देसाई - जैन गुर्जर कवियो भाग ४ पृ० ३२३-२४ ( न० सं० ) ।
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