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मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास श्री लोहाचारज मुनि धर्म विनीत हैं, तिन कृत धत्ताबंध सुग्रंथ पुनीत है। ता अनुसार कियो सम्मेद विलास है,
देव ब्रह्मचारी जिनवर को दास है । इससे स्पष्ट है कि देव ब्रह्मचारी ने लोहाचार्य की रचना के आधार पर सम्मेद शिखर विलास की रचना की थी। श्री कामता प्रसाद जैन को शंका हुई कि देवाव्रह्म का नाम सम्भवतः केशरी सिंह होगा ।' उनको यह शंका सम्भवतः इस पंक्ति के कारण हुई होगी
केसरी सिंह जान, रहै लसकरी देहरै,
पंडित सब गुण जान, याको अर्थ बताइयो । केशरी सिंह भी जयपुर नगर के लश्करी मंदिर में रहते थे और उन्होंने लोहाचार्य के ग्रंथ सम्मेद विलास का अर्थ बताया था, न कि वे इसके लेखक थे और न देवाब्रह्म का नाम केशरीसिंह था।
देवा ब्रह्म ने अनेक पद और विनतियाँ लिखी हैं। एक विनती की कुछ पंक्तियाँ उदाहरणार्थ प्रस्तुत हैं--
खोटी जाति चिंडाल की जी, घात करै अधिकाय । जिनवर नांव जप्यां थकां जी, आवागमण मिटाय । सरधा करिकै पूजै ध्यावै, मनवंछित फल पावै ।
देवा ब्रह्म चरणां चित्त लावै, करम कलंक मिटावै । उनके एक पद की भी कुछ पंक्तियाँ देखिए--
जगपति ल्योरा ला महाराज, विउद विचारो ला महाराज । मैं अपराध अनेक किया जो, माफ करो गणराज । और देवता सबहीं देष्या, खेद सहों बिन काज । थारो जस तो सुरनर गावै पावै पद सिव काज ।
देवा ब्रह्म चरणां चित लावै, सेवग करि हित काज । इसमें मैं, अपराध, किया, अनेक, आदि निर्मल खड़ी बोली के प्रयोगों के साथ विउद, सेवग, थारो, देष्या जैसे प्रयोग भी द्रष्टव्य हैं।
आपकी एक अन्य रचना सास बहू का झगड़ा भी पदों में ही आबद्ध है। इसमें १७ पद्य हैं और भाषा पर राजस्थानी प्रभाव स्पष्ट
१. श्री कामता प्रसाद ---हिन्दो जैन साहित्य का संक्षिप्त इतिहास पृ० १६५ ।
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