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दानविजय
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चौबीस जिन स्तुति, आदि--
श्री ऋषभ जिणेसर केसर चरचित काय,
त्रिभुवन प्रतिपालें, बालक ने जिम माय । अंत--श्री विजयराज सूरि चरण कमल सुपसाय,
कहे दान विजय इम मंगल करयो माय ।' जैन गुर्जर कवियों के प्रथम संस्करण में तेजविजय शिष्य धनविजय की रचनाओं के साथ इनका घालमेल हो गया था। नवीन संस्करण में उसे सुधारने का प्रयास किया गया है किन्तु अभी भी निश्चित रूप से कुछ भी नहीं कहा जा सकता।
दामोदर---अंचलगच्छ के दामोदर कवि ने सं० १७५६ में 'रसमोद शृंगार' नामक ग्रंथ लिखा। पता नहीं चला कि इनका ग्रंथ संस्कृत भाषा में है अथवा मरुगुर्जर में । धर्मचंद्र के एक शिष्य दामोदर ने 'चंद्रप्रभ चरित्र' सं० १७२७१, (?) (भूभृन्नेत्राचत शशधरांक) लिखा है जिसकी भाषा संस्कृत है। यह सं० १७२१ होगा और संभव है कि छपने में १ के स्थाथ पर ७ छप गया हो। जो हो, पर संभव है कि ये दोनों एक ही कवि हो । इनके संबंध में शोध की आवश्यकता है ।
दिलाराम–इनके पूर्वज खंडेले में पहलगांव के रहने वाले थे किंतु बूंदी नरेश के अनुरोध पर वहीं बस गए थे। इनकी तीन रचनायें'आत्मद्वादशी', व्रत विधान रासौ और दिलाराम विलास--प्राप्त हैं। आत्मद्वादशी में आत्मा का वर्णन है। व्रत विधान रासौ (सं० १७६७) में व्रतों का विधि-विधान बताया गया है। तीसरी रचना दिलाराम विलास (सं० १७६८) इनकी सभी लघु रचनाओं का संकलन है। इनकी कृतियाँ अप्रकाशित हैं किन्तु डॉ० कस्तूरचंद कासलीवाल का कथन है कि इनकी भाषा परिमार्जित है और उस पर हाड़ौती का प्रभाव परिलक्षित होता है ।
१ मोहनलाल दलीचन्द देसाई-जन गुर्जर कवियो भाग २ पृ० ४४५-४७,
भाग ३ पृ० १३९२ (प्र०सं०) और भाग ५ पृ० १६३-१६४ (न०सं०)। २. डा. कस्तूरचन्द कासलीवाल (राजस्थानी पद्य साहित्यकार-लेख)
राजस्थान का जैन साहित्य पृ० २११-२१२ ।
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