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मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास दीपचंद II-ये बेगर खरतरगच्छीय जिनसागर7 जिनदेवेन्द्र 7 पनचंद >धर्मचंद के शिष्य थे। आपने सुरप्रिय चौपाई' की रचना सं० १७८१ वैशाख शुक्ल ३, सिन्धुदेश में पूर्ण किया। इसकी कवि की स्वलिखित हस्तप्रति प्राप्त है, किन्तु उद्धरण प्राप्त नहीं हो सका।
दीपचंद कासलीवाल -आप कासलीवाल गोत्रीय खण्डेलवाल वैश्य थे। अतः आप दीपचंद शाह और दीपचंद कासलीवाल नामों से जाने जाते हैं। ये लोग मूलतः सांगानेर निवासी थे, बाद में आमेर में बस गए थे। ये स्वभाव से सरल, सादगी पसंद और आध्यात्मिक प्रवृत्ति के व्यक्ति थे। इन्होंने अनुभव प्रकाश ( सं० १७८१ ), चिद्विलास ( सं० १७७९) आत्मावलोकन (सं० १७७४ ), परमात्म प्रकाश, ज्ञानदर्पण, उपदेश रत्नमाला और स्वरूपानंद नामक ग्रंथों की रचना की है। आपने राजस्थानी गद्य-निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान किया है। प्राचीन मरु या पुरानी हिन्दी में इतनी गद्य रचनाएँ कम लेखकों की प्राप्त हैं। इन कृतियों का साहित्यिक महत्व भले कम हो परन्तु प्रारम्भिक हिन्दी गद्य के विकास और प्रचार की दृष्टि से इनका बड़ा महत्व है। आपकी कृतियों का विषय प्रायः आध्यात्मिक चिंतन ही है। ढूढाहड़ प्रदेश के अन्य दिगम्बर जैन लेखकों की भाँति इनकी भाषा में भी ब्रजभाषा और राजस्थानी के साथ खड़ी बोली के प्रयोग मिले जुले हैं। इनकी भाषा का एक नमूना प्रस्तुत किया जा रहा है -
जैसे बानर एक कांकरा में पड़े रोवै । तैसे याके देह का एक अंग भी छीजै तो बहुतेरा रोवै । ये मेरे और मैं इनका झूठ ही ऐसे जड़न के सेवन तै सुख माने । अपनी शिवनगरी का राज्य भूल्या, जो श्री गुरु के कहे शिवपुरी को संभालै, तो वहाँ का आप चेतन राजा
अविनाशी राज्य करै ।३ १. मोहनलाल दलीचन्द देसाई--जैन गुर्जर कवियो भाग ३ पृ० १४५२
(प्र०सं०) और भाग ५ पृ० ३१९ (न०सं०)। २. डा. प्रेमप्रकाश गौतम -हिन्दी गद्य का विकास, अनुसंधान प्रकाशन,
कानपुर। ३. सम्पादक अगरचन्द नाहटा----राजस्थान का जैन साहित्य पृ० २४९ ।
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