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मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास होगी । इन्होंने दुर्जनदमन चौपाई (सं० १७०७ पूगल), दाम्मनक चौपइ (सं० १७१० नोखा) लिखा।' इनकी रचनाओं का विस्तृत विवरण उद्धरण श्री मोहनलाल दलीचन्द देसाई ने नहीं दिया है, केवल दाम्मन्नक चौपाइ का उल्लेख किया है।
झाझण यति-आपने सं० १७६५ से पूर्व 'हरिवाहन चौपाई' की रचना की। इसके अतिरिक्त इनके तथा इनके कृतित्व के संबंध में अन्य सूचना उपलब्ध नहीं हो सकी।
टीकम -आप ढूढाड प्रदेश के कालख ग्रामवासी थे। इन्होंने सं० १७१२ में 'चतुर्दशी चौपई' की रचना इसी ग्राम के जिनमंदिर में की थी। आपकी दूसरी रचना 'चंद्रहंस की कथा' है जो सं० १७०८ में लिखी गई थी, कवि ने रचना काल इस पंक्ति में बताया है--
संवत आठ सतरा सै वर्ष करता चौपइ हुवो हर्ष ।
जेठ मास अर पाखि अंधियार, जाणो दोइज अर रविवार । प्रारंभ-ओंकार अपार गुण; सबही अक्षर आदि,
सिद्ध ताको जप्या, आखिर एह अनादि । बाद में कवि ने लिखा है--
टीकम तणी वीनती सहु; लघु दीघु संवार जुलेहु । मनधर कृपा एह जो कर, चंद्रहंस नेमिसुख लहै ।
रोग विजोग न व्यापै कोई, मनधर कथा सुण जो कोई।" रचनाओं के रचनाकाल से स्पष्ट है कि आप १८वीं शती के प्रथम दशक के रचनाकार थे। चंदहंस कथा की जोशी स्यौजीराम द्वारा लिखित सं० १८१२ की प्रतिलिपि प्राप्त है। १ अगरचन्द नाहटा--परंपरा पृ० १०७ । २. मोहनलाल दलीचन्द देसाई- जैन गुर्जर कवियो भाग ३ पृ० ११९२
(प्र० सं०) और भाग ४ पृ० १७० (न० सं०)। ३. मोहनलाल दलीचन्द देसाई--जैन गुर्जर कविओ भाग २१० ४६६प्र०सं०
और भाग ५ प० २२९ (न०सं०)। ४. अगरचन्द नाहटा.-राजस्थान का जैन साहित्य पु० २११ । ५. डा० कस्तूरचन्द कासलीवाल--राजस्थान के जैव शास्त्रभंडार की ग्रन्थ
सूची भाग ३ पृ० ८२-८३ ।
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