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मझगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास तेजमुनि लगता है कि १८वीं विक्रमीय में लोकागच्छ में दो तेजपाल हो गये हैं। प्रस्तुत तेजपाल या तेजमुनि कर्मसिंह>केशव 7 महिराज>टोडर>भीमजी के शिष्य थे । मरुगुर्जर (हिन्दी) में इनकी कई रचनाएं प्राप्त हैं जिनका विवरण आगे दिया जा रहा है । रचनाओं से उपरोक्त गुरुपरंपरा की पुष्टि होती है अतः यह स्पष्ट होता है कि ये इंद्रजी के शिष्य तेजपाल से भिन्न थे। इन दोनों के अतिरिक्त अंचलगच्छ में एक अन्य तेजसिंह हो गये हैं उनका भी संक्षिप्त विवरण आगे दिया जा रहा है।
प्रस्तुत तेजपाल या तेजमुनि ने 'चंदराजा नो रास' की रचना सं० १७०७ कार्तिक दीपावली सोमवार को राणपुर में चार खण्डों में पूर्ण की थी। रचना का आदि----
श्री जिनशांति नमुं सदा, सोलसमों जिनचंद;
असुख व्यथा आपद हरें, आपे परमाणंद । इसमें राजा चंद के शील का गुणगान किया गया है, यथा
सील प्रभावे सुख लह्यो चंद नरेसर राय;
धुर छेहां लागि सांभलो, चरित कहूँ सुखदाय । राजा चंद ने सपरिवार-गुणावली, प्रेमला लच्छि, प्रधान सुमति और पुत्र शिवकुमार तथा पुत्री शिवमाला--संयम का पालन किया
अ षट् जीवे संयम लीधो जिनवर जी ने पासे रे, .
बात थई विमलपुरे, चंद राजा संजम लीधो रे । गुरुपरंपरार्गत कवि ने लूकागच्छ के रूप 7 जीव7 रूपसिंह 7 दामोदर 7 कर्मसिंह 7 केशव > महिराज > टोडर> और भीम जी का नाम स्मरण किया है।
रचना स्थान और रचनाकाल संबंधी पंक्तियाँ प्रस्तुत हैं-- सोरठ देस देसा सिर सोहे, सहु देसां नो टीको रे, नगर भलो गढ़ कोट संयुक्तो, नामे राणपुर नीको रे । संवत सतरे सइ साते कार्तिक पर्व दीवाली वारु रे, श्वेत पक्ष द्वितीयाइ सोहें, सोमवार छे वारु रे । चंद प्रबन्ध सरस में कीधो, चोथउखण्ड उदारो रे,
भणसे गुणसे भाव स्युं, ते लहसी जयजय कारो रे।' १. मोहनलाल दलीचन्द देसाई--जैन गुर्जर कवियो भाग ४ पृ० १४९-१५१
(न० सं०)।
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