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मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
आपकी कृति नेम राजीमती नो बारमासो (सं० १७६६ पौष शुक्ल १२ रविवार ) कच्छ देश में राजा प्रागराय के राज्य में हुई । यह प्रकाशित है । "
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उत्तमचंद कोठारी ने नेमचरित सवैया का कर्त्ता तेजसिंह को बताया है । किन्तु गुरुपरंपरा नहीं दी है इसलिए दोनों एक ही व्यक्ति हैं या भिन्न-भिन्न हैं - यह निश्चय नहीं है ।
तेजसिंह गणि-- लोंकागच्छ के रूपऋषि > जीव जी > वरसिंह > जशवंत > रूपसिंह > दामोदर > कर्मसिंह > केशव जी के शिष्य थे । इन्होंने दृष्टांतशतक नामक संस्कृत पद्यग्रंथ की रचना की है जिसमें उपरोक्त परंपरा बताई गई है । आपने नेमनाथ स्तवन सं० १७११ asोदरा में लिखा । उसका आदि-
समरु गौतम स्वामि, केशव जी शुभनाम । तास पसाये गाइसु बीवसनो जिनराय, सायल बरणे सोभतो, नेम प्रभू सुखदाय ।
सद्गुरु ने चर्णे नमी श्री गुरु नी सेवा करुं
रचनाकाल -- संवत इंद्र अश्व ससी सही दीवो सो प्रत्नसार अ, श्री नेम प्रभू जी नी स्तुति कीधी, संघ सहु जयजयकार ओ । आपने 'ऋषभ जिन स्तवन' सं० १७२७ चैत्र शुक्ल १५, जालौर में पूर्ण किया ।
संवत सतर सतावीसे चैत्र मासे हो तिथि पूनम जांण, श्री पूज्य केसव नाम थी गणि तेजसिंघ हो सदा कोडि कल्याण । इनके अतिरिक्त आपने शांति जिनस्तवन सं० १७३३, बुरहानपुर, वीर स्तवन सं० १७३३; २४ जिनस्तवन सं० १६३४ रतनपुरी, आंतरा नुं० स्तवन १७३५ नांदस और सीमंधर स्वामी स्तवन सं० १७४८ वीरमगाम में लिखा है ।
शांति जिनस्तवन का रचनाकाल -
संवत सतर तेत्रीसा संवछर बुरहानपुर चोमास ओ,
मोहनलाल दलीचन्द देसाई -- जैन ( प्र०सं०), भाग ५ पृ० २५७ ( न०सं०) ।
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गुर्जर कवियो भाग २ पृ० ४६६
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