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तत्वविजय
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तत्वविजय-आप तपागच्छ के प्रसिद्ध आचार्य यशोविजय के शिष्य थे। इन्होंने सं० १७२४ वसंत पंचमी गुरुवार को पूयाणी शहर में 'अमरदत्त मित्रानंद नो रास' (४ खंड ३४ ढाल ८३१ कड़ी) की रचना पूर्ण की। इसका प्रारंभ मां शारदा की बंदना से हुआ है, यथा
पहिलं प्रण, शारदा, वरदाता विख्यात,
आनंद धरी आदर करी, मया करेयो मात । इसमें शारदा के साथ ऋषभ, शांति, नेमि और महावीर के अलावा गौतम गणधर आदि की भी बंदना की गई है। दान का महत्व बताने के लिए अमरदत्त मित्रानंद की कथा दृष्टांत स्वरूप कही गई
दाने दोलत पामीइं, बने सुख श्रीकार, भावे भवियण साथ ने, देयो सरस आहार । दान तणा परभाव थी अमरदत्त मित्रानंद,
सुख विलसी संसारना, पाम्या परमानंद । यह कथा शांतिनाथ चरित्र से ली गई है। रचनाकाल इस प्रकार बताया गया है
वेद नयण ऋषि बिधु संख्याइ संवत्सर सार जी, मास वसंत पूर्णी तिथि पंचमी उत्तम सु गुरुवार जी। रेवती नक्षत्रे विजय मुहर्ते बलि चोथो रवियोग जी, . निर्मल उज्वल पक्ष अनोपम शुभ मलिया संयोग जी।
गुरु परंपरागत विजयदेव>विजयप्रभ > नयविजय> जसबिजय उपाध्याय का सादर वंदन किया गया है। गुरु यशोविजय के लिए कवि ने लिखा है
तस सीस वाचक वृन्द विभूषण दूषणरहित ते सोहे जी, श्री जसविजय उवझाय शिरोमणि भवियण नां मनमोहे जी।' चौबीसी--अथवा चतुर्विंशति जिनभास अथवा गीत का आदि
ऋषभ जिणंद मया करी रे, दरिसन दाखो देव, अलजों छइ मनमा घणो रे, करवा ताहरी सेव ।
जिणेसर तुम स्युं अधिक सनेह । १. मोहनलाल दलीचन्द देसाई-जैन गुर्जर कवियो भाग ४ पृ. ३४०
(न• सं०)।
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