________________
१६८
मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
वियोगिनी बाला राजीमती के' विरह का अन्त संसार त्याग और दीक्षा में पर्यवसित हो जाता है। वह संयमनाथ से पाणिग्रहण करके शिवपुर में अपने पति से मिलती है इसमें फाल्गुन मास का वियोग वर्णन देखिए
फागुन में सखिफाग रमें सब कामिनि कंत बसंत सुहायो । लाल गुलाल अबीर उड़ावत तेल फुलेल चमेल लगायो । चंग मृदंग उचंग बजावत, गीत धमाल रसाल सुणायो। हूं तो जसा नहि खेलूंगी फाग वैरागी अज्यू मेरो नाह न आयो।
श्रीपाल रास अथवा चौपाई (४९ ढाल सं० १७४० चैत्र शुक्ल ७ सोमवार, पाटण) यह केशर मुनि द्वारा संपादित और प्रकाशित है। इसमें नवकार मंत्र का माहात्म्य श्रीपाल के जीवन-दृष्टांत द्वारा समझाया गया है। दूसरा श्रीपाल रास (२७१ कड़ी सं० १७४२ चैत्र कृष्ण १३ पाटण) प्रथम रास का आदि निम्नवत् है
श्री अरिहंत अनंत गुण धरिये हीयडे ध्यान,
केवल ज्ञान प्रकाशकर दूरिहरण अग्यांन । दूसरे का आदि चउवीसे प्रणमुं जिनराय, जास पसायइ नवनिधि पाय ।
सुयदेवा धरि रिदय मझारि, कहिस्युं नवपद नउ अधिकार । यत्र जंत्र छइ अवर अनेक, पिणि नवकार समउ नहि एक ।
सिद्ध चक्र नवपद सुपसायइं, सुख पाम्या श्रीपाल नररायइ। रचनाकाल--सतरै बयालीसै समै, वदि चैत्र तेरसिं जाण,
ए रास पाटण मां रच्यो, सुणता सदा कल्याण । इसकी कुल पद्य संख्या २८७ है। इसका अन्त इस प्रकार है
श्रीपाल चरित्र निहालनइ सिद्धचक्र नवपद धारि । ध्याइयइ तउ सुख पाइयइ जगमां जस विस्तार । श्री खरतरपति प्रगट श्री जिनचन्द्र सरीस,
गणि शांति हरष वाचक तणो कहइ जिनहरष सुसीस ।' १. डा० प्रेमसागर जैन--जैन हि० जैन भक्तिकाव्य और कवि पृ० २३३-२३९ २. डा० लालचंद जैन-जैन कवियों के ब्रजभाषा प्रबन्धकाव्यों का अध्ययन
प० ७४ । ३. सम्पादक कस्तूरचन्द मासलीवाल-राजस्थान के जैन शास्त्र भण्डार की __ ग्रन्थसूची भाग ४ पृ० ३६५-६६ ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org