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toगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
सकल सिद्धि दातारवर, श्री युग आदि जिणंद, शेत्रुंजय सिरसेहरो, प्रणमु परमानंद | ब्रह्माणी वरदायका, त्रिभोवन जग विख्यात, प्रणमुं हुं श्रुत देवता, कवि जन केरी मात ! गुरु परम्परान्तर्गत इन्होंने ललितसागर और माणिक्यसागर का सादर वंदन किया है
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तस सीस दिनदिन दीपता श्रुतनिधि गुण गंभीर, माणिक्यसागर सद्गुरु, प्रणमु साहस धीर । गुरुप्रसाद कविजन कवें, काव्य छंद प्रस्तार, सरसव ने मेरु करें, ओ मोटो उपगार । रचनाकाल -- संवत सत्तर अकोत्तरे श्री पाटण नयर मझारि रे, सूची कृष्णपक्ष तेरस दिनि, नक्षत्र पुष्य शशिवार रे । रचना का स्रोत बताते हुए ज्ञानसागर ने लिखा हैश्री
शुकराज चरित्र मैं नथी दीक्षा नो अधिकारो रे, श्राद्ध विधि थी आंणीओ दीक्ष्यानो विस्तारो रे । अर्थात् रचना तो शुकराज चरित पर आधारित है किन्तु उसमें दीक्षा प्रकरण नहीं था उसका विस्तार लेखक के श्राद्धविधि के आधार पर किया है ।
आपकी दूसरी रचना धम्मिलरास ( ३ खण्ड १००६ कड़ी, सं० १७४१ कार्तिक शुक्ल १३ गुरुवार) की प्रारम्भिक पंक्तियाँ अग्रलिखित हैं
स्वस्ति श्री सुखदायका, त्रिभुवन माता जेह,
प्रणम हूं निति प्रेम सु धुरि सरसति धरि नेह ।
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इसमें कबि ने अनेक छंदों - अलंकारों का नाम गिनाया है; इससे वह काव्य शास्त्र का ज्ञाता प्रतीत होता है, यथा
काव्य कुंडलीया कवित्त वर, श्लोक सवाया भेऊ, गाता गूढ़ा गीत बहु, यमक रुपक भेय जेऊ । छंद वस्तु ने छप्पया, दुग्धक दोधक भांति, अडयल-भडअल आरया चौटीआ चौपइ जाति । छूआ हूमेला परधड़ी, अऊर पदादि अनेक,
भेद न लहू अहना भला, वली मात्रादि विवेक । इत्यादि
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