SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 209
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ toगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास सकल सिद्धि दातारवर, श्री युग आदि जिणंद, शेत्रुंजय सिरसेहरो, प्रणमु परमानंद | ब्रह्माणी वरदायका, त्रिभोवन जग विख्यात, प्रणमुं हुं श्रुत देवता, कवि जन केरी मात ! गुरु परम्परान्तर्गत इन्होंने ललितसागर और माणिक्यसागर का सादर वंदन किया है १९२ तस सीस दिनदिन दीपता श्रुतनिधि गुण गंभीर, माणिक्यसागर सद्गुरु, प्रणमु साहस धीर । गुरुप्रसाद कविजन कवें, काव्य छंद प्रस्तार, सरसव ने मेरु करें, ओ मोटो उपगार । रचनाकाल -- संवत सत्तर अकोत्तरे श्री पाटण नयर मझारि रे, सूची कृष्णपक्ष तेरस दिनि, नक्षत्र पुष्य शशिवार रे । रचना का स्रोत बताते हुए ज्ञानसागर ने लिखा हैश्री शुकराज चरित्र मैं नथी दीक्षा नो अधिकारो रे, श्राद्ध विधि थी आंणीओ दीक्ष्यानो विस्तारो रे । अर्थात् रचना तो शुकराज चरित पर आधारित है किन्तु उसमें दीक्षा प्रकरण नहीं था उसका विस्तार लेखक के श्राद्धविधि के आधार पर किया है । आपकी दूसरी रचना धम्मिलरास ( ३ खण्ड १००६ कड़ी, सं० १७४१ कार्तिक शुक्ल १३ गुरुवार) की प्रारम्भिक पंक्तियाँ अग्रलिखित हैं स्वस्ति श्री सुखदायका, त्रिभुवन माता जेह, प्रणम हूं निति प्रेम सु धुरि सरसति धरि नेह । , इसमें कबि ने अनेक छंदों - अलंकारों का नाम गिनाया है; इससे वह काव्य शास्त्र का ज्ञाता प्रतीत होता है, यथा काव्य कुंडलीया कवित्त वर, श्लोक सवाया भेऊ, गाता गूढ़ा गीत बहु, यमक रुपक भेय जेऊ । छंद वस्तु ने छप्पया, दुग्धक दोधक भांति, अडयल-भडअल आरया चौटीआ चौपइ जाति । छूआ हूमेला परधड़ी, अऊर पदादि अनेक, भेद न लहू अहना भला, वली मात्रादि विवेक । इत्यादि 4 For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy