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________________ ज्ञानसमुद्र १९१ सुलभ हैं। आपका रचना क्षेत्र बड़ा विस्तृत है जिसमें विविधता के भी दर्शन होते हैं। ज्ञानसमुद्र-जिनहर्ष सूरि अथवा गुणरत्न सूरि के शिष्य थे। आपकी रचना ज्ञान छत्रीसी (सं० १७०३) का प्रारम्भ इस प्रकार हुआ है--- जिनवर देव न जाणीओ, सेव्या नही सुसाध, भगवंत धरम न भेदिओ, इम भव भमियउ अगाध । अन्त--संवत सतर तिडोत्तरा समैं, श्री जिनहर्ष सूरीसो जी, वाचक श्री गुणरतन वखाणीई, न्यानसमुद्र निज सीसोजी। कीधी अह छत्तीसी कारणे, श्रावक समकित धारोजी, सुविहित आग्रह चोथ साह रे, दोसी वंस उदारो जी।' यह रचना कवि ने चोथ साह के आग्रह पर लिखी लेकिन यह स्पष्ट नहीं होता कि वह जिनहर्ष का अथवा गुणरत्न का शिष्य है। श्री मोहनलाल दलीचन्द देसाई ने जैन गुर्जर कवियों के भाग २ में ज्ञानसागर और ज्ञानसमुद्र को एक समझ लिया था, किन्तु नबीन संस्करण के सम्पादक श्री कोठारी जी का कथन है कि ये दोनों दो भिन्न-भिन्न व्यक्ति हैं। उन्होंने दोनों का विवरण-उद्धरण भी अलगअलग दिया है। इसलिए उनका कथन ही मान्य प्रतीत होता है। ज्ञानसागर का विवरण आगे दिया जा रहा है। ज्ञानसागर I-इस नाम के वस्तुतः कई अच्छे कवि अन्य जैन लेखक हो गये हैं इसलिए इस नाम को लेकर कई शंकायें उठी हैं। उनकी चर्चा क्रमशः आगे की जायेगी। प्रस्तुत ज्ञानसागर अंचलगच्छ के गजसागरसूरि>ललित सागर> माणिक्य सागर के शिष्य थे। इन्होंने 'शकराजरास' की रचना (४ खण्ड ९०५ कड़ी) सं० १७०१ शचिमास कृष्ण १३ सोमवार को पाटण में पूर्ण की; जिसकी प्रारम्भिक पंक्तियाँ निम्नांकित हैं१. मोहनलाल दलीचन्द देसाई--र्जन गुर्जर कविओ भाग ४ पृ० ७१ (न०सं०)। २. वही भाग २ पृ. ७९ (प्र०सं०)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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