________________
१९०
मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद इतिहास
1
(१७ ढाल) में जैन परम्परा का विवरण है । इसमें सोहम गणि, जंबु स्वामी, शय्यंभव संभूतविजय, थूलभद्र, आर्यं सुहस्ती, इन्द्रदिन्न, वयरसेन के अलावा वज्रसेन, समंतभद्र, मानतुङ्ग, जयानंद, उद्योतन सूरि, सर्वदेव सूरि, यशोभद्र और अजितदेव आदि का सादर स्मरण किया गया है । इस प्रकार यह पट्टावली की दृष्टि से एक अवलोकनीय ग्रन्थ है । इनकी 'चौबीसी' चौबीसी बीसी संग्रह में प्रकाशित हो चुकी है ।
आपने गद्य साहित्य भी पर्याप्त मात्रा में लिखा है । सीमंधर स्वामी ने विनति यति प्रतिक्रमण सूत्र पर बालावबोध (१७४३ सं० राधनपुर ) पाक्षिक क्षामण बालावबोध (१७७३ माघ शुक्ल ८), लोकनाल बालावबोध, सीमंधर जिन स्तवन ३५० गाथा पर बालावबोध, सकलार्हत पर बालावबोध, आठ योग दृष्टि विचार संज्झाय नो वालावबोध इत्यादि आपकी उल्लेखनीय गद्य रचनायें हैं । इनमें से अन्तिम बालावबोध की मूल रचना यशोविजय कृत है । इन गद्य रचनाओं के उद्धरण उपलब्ध नहीं हैं । आनन्दघन २२ स्तवन बालावबोध कुमारपाल देसाई द्वारा प्रकाशित है ।
चैत्यवंदन, देववंदन प्रत्याख्यान भाष्यमय बालावबोध (सं० १७५८, सुरत) पुष्ट गद्य रचना है । '
शत्रुंजय मंडन युगादि देव स्तवन (७ कड़ी) छोटा सा किन्तु भावपूर्ण भजन है । इसका आदि देखिये --
गोकुल जास्यां धेनु चारास्यां जल जमुना नो पास्यां, माहरा मोह्ण लाल गोकल क्यारे जास्यां,
गोकल जास्यां गौ चरास्यां कीटे रव जास्यां ।
इनकी अधिकतर रचनाओं में जैनसिद्धान्त, जैनतीर्थ, व्रत-उपवास, देववन्दन-पूजन स्तवन आदि की व्यंजना है पर यह रचना उन सबसे भिन्न सहज और सरस भावपूर्ण भजन है । इनकी रचनाओं में सिद्धांत कथन के साथ-साथ सरस और लयात्मक स्थल भी पर्याप्त मात्रा में
१. मोहनलाल दलीचन्द देसाई -- जैन गुर्जर कविओ भाग २ पृ० ३०८-३३८ तथा ४९२ और भाग ३ पृ० १३०१ - १३१२ ( प्र० सं० ) तथा भाग ४ पृ० ३८२-४१८ ( न० सं० ) ।
२. वही
पृ० ४०४-४०६ ( न० संस्करण) ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org