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मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास इसे प्राचीन स्तवन रत्नसंग्रह भाग १ पृ० ९३ पर प्रकाशित किया गया है। ___जंबुरास-(३५ ढाल ६०८ कड़ी सं० १७३८ मागसर शुक्ल १३ बुधवार, थिरपुर) आदि -प्रणमी पास जिणंदना चरणकमल सुखकार ।
जम्बू स्वामी तणो कहूँ सरस कथा अधिकार । अन्त--धन धन जम्बू मुनिवर राय, हुं प्रणमुतस पाया बे।
कंचन कोड़ी कामिनी छोड़ी, संयम सुं मन लाया बे। रचनाकाल--वसु कृशानु जलनिधि ससी वर्षइं अह रच्यो सुप्रमाणे बे ।
मार्गशीर्ष सित तेरस दिवसे, शशी सुतवार बखाणे बे। कुशल विजय पंडित संवेगी, तास कहण थी कीधो बे ।
जंबू स्वामी तणों लिवलेशे, अह सम्बन्ध मि सीधो बे । इसकी अनेकानेक प्रतियाँ अनेक ज्ञानभंडारों में उपलब्ध होने से इसकी लोकप्रियता प्रमाणित होती है ।
(जिन) पूजा विधिस्तवन (सं० १७४१ विजयादसमी बुधवार, समी) रचनाकाल --चन्द्र वेद भोजन वरिस विजयदसम बुधवार ।
पूजाफल रचना रची, समी सहर मझार । यह भी प्राचीन स्तवन रत्नसंग्रह भाग १ में प्रकाशित है।
बारव्रत ग्रहण (टीप) रास (८ ढाल २०६ कड़ी सं० १७५० चौमास अहमदाबाद) आदि--प्रणमी पेमे पास ना पद पंकज अभिराम,
नवनिधि ऋधि सिधि संपजे जेहनु समरे नाम । सुरिजी ने यह रचना राजनगरवासी वच्छराज सुत लालचन्द के लिए लिखी थी। रचनाकाल-संवत नभ बाण मुनि विधु ओ (१७५०) वरसे, ..
रह्या चोमास, पुरे नवावास मां । संवेगी मुनि परिवर्या श्री ज्ञानविमल सूरीद,
रह्या उल्लास मां अ। इसे वकील केशवलाल प्रेमचंद मोदी ने संपादित-संशोधित करके दयाविमल जी जैन ग्रंथमाला अंक ११ में जंबुस्वामी रास के साथ प्रकाशित किया है।
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