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ज्ञानसमुद्र
रचनाकाल - संवत कंथ संख्या घो ओके महाव्रत महावीर ने जाणो रे, सुचि कार्तिक तेरसि रेवति गुरुवार सिद्धियोग बखाणो रे ।
आपकी अन्य रचनाओं का विवरण - उद्धरण आगे संक्षेप में दिया जा रहा है - इलाची कुमार चौपाई अथवा रास (१६ ढाल १८७ कड़ी सं० १७१९ आसो सुदी २, बुधवार, शेखपुर ) । इसमें विधिपक्ष के गुणरत्न सूरि का भी उल्लेख किया गया है किन्तु वह गुरु रूप में बराबर माणिक्य सागर की ही वन्दना करता है ।
माणिक्यसागर मुझ गुरु ज्ञान दृष्टि दातार, प्रणमुं हुं पय तेहना, वाणी हुई विस्तार |
अथवा--ललितसागर बुध लावण्यधारि, तस शीष्य प्रथम सुखकारी बे, माणिक्यसागर मुनि सुप्रकारी, मुझ गुरु ज्ञानदातारी बे । ते गुरु तणा लही सुपसाय, ये इलाची पुत्र ऋषि गाया रे ।
इससे स्पष्ट होता है कि अनेक ज्ञानसागरों में प्रस्तुत ज्ञानसागर माणिक्यसागर के शिष्य और इलाचीकुमार चौपाई के रचयिता हैं । इसका रचनाकाल इस प्रकार कहा गया है
संवत सतर उगणीसा वरसे, सेषपुरे मन हरषे बे, वली ऋषि मण्डल मांथी लीधुं, ओ अधिकार में सीधु बे ।
अर्थात् यह रचना ऋषिमण्डल से ली गई है । यह रचना 'अलाचीकुमार नो रास तथा बारभावना अने अठार पाप स्थानकादिनो संग्रह' में प्रकाशित है । आपने बहुत से रास लिखे हैं जिनमें से कई प्रकाशित हो चुके हैं अतः सभी रासों का व्यौरा देना स्थान सीमा के कारण सम्भव नहीं है फिर भी कुछ के उल्लेख किए जा रहे हैं ।
शांतिनाथ रास अथवा चरित्र - यह उत्तराध्ययन पर आधारित रास है । इसे शांतिनाथ रास अथवा चरित्र अथवा चौपाई भी कहा गया है अर्थात् इस समय तक आते आते रास, चरित्र और चौपाई का शास्त्रीय भेद मिट चुका था। रास का आकार भी चरित्र या प्रबन्ध की तरह विस्तृत हो गया था । यह रचना ६२ ढाल १४३५ कड़ी की है और सं० १७२० कार्तिक कृष्ण ११ रविवार को पाटण में पूर्ण हुई थी । कवि ने हेमसूरि कृत शांतिचरित्र से शांतिनाथ का चरित्र अवतरित किया है । चित्रसंभूति चौपाई (३९ ढाल ७४५ कड़ी सं०
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