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जिनहर्ष
१६७ प्रकाशित है। 'जसराज बावनी' इनकी श्रेष्ठ रचना है। इसे ऊंकार बावनी, मातृका बावनी और कवित्त बावनी भी कहा जाता है यह रचना सं १७३८ फाल्गन कृष्ण ७ गुरुवार को पूर्ण हई थी। इसके आदि में ऊकार का वंदन है इसीलिए इमें ऊंकार बावनी कहते हैं । वे कहते हैं कि ऊकार कामधेनु के समान है। इसे छोडकर मतिमंद छेड़ दहने जाते हैं --
कामदुधा करतें जू विडार के, छेरि गहें मतिमंद जि कोई ।
धर्म कुँ छोर अधर्म करें जसराज उणें निज बुद्धिविगोई। रचनाकालसंवत सत्तर अठतीसे मास फागुण में बहुल सातम दिनकर गुरु पाओ है। वाचक शांतहरष ताह के प्रथम शिष्य भले के अक्षर पर कवित्त बनाये है।
- इसमें उन्होंने मोक्ष के लिए ज्ञान को आवश्यक बताया है न कि बाह्याडंबर को --
क्षौर सुसीस मुड़ावत हैं केइ लंब जटा सिर केइ रहावें। लुंचन हाथ सूं केई कर रहैं मून दिगम्बर केइ कहावै । राख सूं केइ लपेटि रहें केइ अंग पंचागिन माहे तपावें।
कष्ट करें जसराज बहुत पै ग्यान बिना शिवपंथ न पावै ।' यह रचना जिनहर्ष ग्रंथावली और जैन सत्यप्रकाश तथा अन्यत्र भी प्रकाशित है। आपने सभी तीर्थङ्करों की स्तुति में चौबीसी लिखी है जो २५ पद्यों की सरस रचना है किन्तु आपका कविमन विशेष रूप से नेमि राजीमती प्रसंग में रमा है और इन्होंने इस विषय पर दो सुंदर रचनायें-नेम राजीमती बारहमास सवैया तथा 'नेमि बारहमास' लिखा है। नेमि बारहमास का एक पद्य नमूने के तौर पर प्रस्तुत है
घन की घनघोर घटा उनई विजुरी चमकंति झलाहलिसी। विचि गाज अगाज अवाज करत सु, लागत मो विषवेलि जिसी। पपीया पीउ पीउ रटत रयण जु दादुर मोर वदै ऊली सी । ऐसे श्रावण में, यदु नेमि मिल, सुखहोत कहै जसराज रिसी।
प्रथम रचना 'नेमि राजीमती सवैया' में कवि ने बताया है कि १. अगरचन्द नाहटा--जिनहर्ष ग्रंथावली, प्रका० शार्दूल राजस्थात रिसर्च
इन्स्टीच्यूट बीकानेर सं० २०१८ ।
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