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ज्ञानविजय
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विचार ग्रंथ संग्रह रूप में गद्य रचना है किन्तु इसके गद्य का नमूना नहीं प्राप्त हुआ
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ज्ञानविजय-- आप तपागच्छीय विजय ऋद्धि सूरि के प्रशिष्य और हस्तिविजय के शिष्य थे । आपकी दो रचनाओं का उल्लेख मिलता है चौबीसी और मलयचरित्र । मलयचरित्र का रचनाकाल सं० १७८१ बताया गया है पर संदर्भित उद्धरण नहीं है न अन्य विवरण ही प्राप्त हुआ है। चौबीसी (सं० १७८० दीपावली अहमदाबाद ) के अन्त में २४वें तीर्थंकर महावीर का स्तवन किया गया है । इससे सम्बन्धित कुछ पंक्तियाँ उद्धृत कर रहा हूँ
चौबीसमो चित्त धरो रे नामे श्री महावीर रे, जिन गाऊ बलिहारी ।
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राजनगर रलियामणु रे जां भला जिन आवासरे श्री विजयवृद्धि सूरीश्वर रे रुडा रह्या चोमासरे । रचनाकाल --- संवत् १७८० सीइं रे आछो ते आछो मास रे, दीवाली दिन रुडो रे ते दिन मन ने उल्लास रे ।
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श्री विजय ऋद्धि सूरिसरु रे, गछपति गुरु गुणधाम रे । हस्तीज्ञान सुख पामस्ये रे, सास्वतां शिवसुख ठाम रे, जिजाऊ वलिहारी । "
जैन गुर्जर कवियों के नवीन संस्करण के सम्पादक श्री कोठारी ज्ञानविजय को मलयचरित्र का कर्त्ता मानने के प्रति शंका व्यक्त करते हैं ।
ज्ञान त्रिमल - ( नयविमल ) आप तपागच्छीय विनयविमल के प्रशिष्य एवं धीर विमल के शिष्य थे । आपके पिता भिन्नमाल निवासी ओसवाल वैश्य श्री वासवशेठ थे, इनकी माँ का नाम कनकावती था ।
१. मोहनलाल दलीचन्द देसाई -- जैन गुर्जर कविओ भाग ३ पृ० १६२५ ( प्र० सं० ) भाग ४ पृ० २८५ (न० सं० ) ।
२. वही भाग २ पृ० ५३७, भाग ३ पृ० १४३२, ( प्र० सं० ) भाग ५ पू० ३१०-११ ( न० सं० ) ।
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