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मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास श्री मोहनलाल दलीचन्द देसाई ने किया है किन्तु न तो इस रचना के सम्बन्ध में और न रचनाकार के सम्बन्ध में कोई विवरण या उद्धरण दिया है।
जिनहर्ष-आप बोहरा गोत्रीय जिनहर्ष सूरि और आद्यपक्षीय जिनहर्ष सूरि के भिन्न कविवर जिनहर्ष उर्फ जसराज हैं। जसराज इनका मूलनाम था। श्री अगरचन्द नाहटा इनकी गुरु परंपरा बताते हुए लिखते हैं कि ये खरतरगच्छ के आचार्य जिनकुशल सूरि के प्रशिष्य क्षेमकीर्ति द्वारा प्रवर्तित क्षेमशाखा में जिनराज सूरि के शिष्य थे।' इनकी दीक्षा सं० १६९० के आस पास हई। इनका जन्म सं० १६७५ के लगभग वे बताते हैं। इनका जन्मस्थान मारवाड रहा होगा क्योंकि सं० १७०४ से १७३५ तक की रचनाएं मारवाड़ में ही रचित हैं, सं० १७३६ में वे पाटण गये और शारीरिक व्याधि के कारण वहीं रह गये । वहीं पर सं० १७६४ में इनका स्वर्गवास हुआ । सं० १७३६ से ६३ तक की रचित रचनाएँ वहीं की है इसलिए इनकी रचनाओं को भाषा के आधार पर स्पष्ट रूपसे दो भागों में देखा जा सकता है। प्रथम भाग की रचनाओं पर मारवाड़ी और द्वितीय भाग की रचनाओं पर गुर्जर का प्रभाव प्रत्यक्ष है : इस प्रकार आप मरुगुर्जर के सच्चे प्रतिनिधि कवियों में आते हैं। श्री नाहटा ने इनके बड़े ग्रन्थों की सूची में सत्तर से अधिक कृतियों का नामोल्लेख किया है। इनकी अनेक छोटी कृतियों का सम्पादन भी श्री नाहटा जी ने किया है। इनकी बड़ी रचनाएँ कई जगहों से प्रकाशित हैं। उनकी बताई गुरु परंपरा के समर्थन में 'उपदेश छत्रीसी' की एक पंक्ति मिलती है, यथाअसो जिनराज जिनहरख प्रणमि उपदेश
की छतीसी कहूं सवइ जे छतीस जू । श्री मोहनलाल दलीचन्द देसाई इनकी गुरु परंपरा कुछ दूसरे प्रकार से बताते हैं और प्रमाण स्वरूप पचासों रचनाओं के उद्धरण भी देते हैं इसलिए इसे ही प्रमाणिक समझना उचित होगा। वे इन्हें खरतरगच्छ के गुणवर्द्धन 7 सोमगणि7 शांतिहर्ष का शिष्य बताते हैं । आगे जिन रचनाओं के उद्धरण दिये जा रहे हैं उनसे इनका शांतिहर्ष का शिष्य होना प्रमाणित होता है । विद्याविलास रास में सोमगणि का १. अगरचन्द नाहटा-परंपरा पृ० ९३-९४ ।
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