________________
१४८
महगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
स्तवन आदि प्राप्त हैं । इनमें से कुछ रचनाओं का परिचय और उदाहरण आगे प्रस्तुत किया जा रहा है ।
प्रबोधबावनी या अध्यात्मबावनी (सं. १७३१ मागसर शुक्ल २, गुरुवार) रचनाकाल - शशि गुन मुनि शशि संवत शुकल पक्षि;
---
मागसिर बीज गुरुवार अवतारी है । खल दुखुद्धि कौं अगम भांति भांति करि सज्जन सुबुद्धि कौं सुगम सुखकारी है । इसमें आत्मा को सम्बोधित करके उसे संसार से लिए कहा गया है । अध्यात्म के साथ इस रचना में उत्तम कोटि का है; प्रमाणस्वरूप एक उदाहरण प्रस्तुत हैऊंकार नमामि सोहै अगम अपार, अति है तत्तसार मंत्रन को मुख्य मान्यो है | इनही ते जोग सिद्धि साधवै की सिद्धि जान, साधुभये सिद्ध तिन धुर उरधानो है । पूरन परम परसिद्ध परसिद्ध रूप, बुद्धि अनुमान या बिबुध बखान्यो है । जपैं जिन रंग ऐसो अक्षर अनादि आदि, जाको हेव सुद्धि तिन याको भेद जान्यो है । '
मुक्त होने के काव्यत्व भी
रंग बहत्तरी को प्रास्ताविक दोहा या दूहाबन्ध बहत्तरी भी कहा जाता है । इसमें ७२ दोहे हैं जिनमें नीति, भक्ति और अध्यात्म विषयों पर कवि की सुंदर अभिव्यंजना है । इसका सम्पादन श्री अगरचन्द नाहटा ने और प्रकाशन 'वीरवाणी' में हुआ है । उदाहरणार्थ इसके कुछ दोहे उद्धृत किए जा रहे हैं
धरम ध्यान ध्यावै नही, रहे जु आरत मांहि, जिनरंग वे कैसे तरे जिन रंगस्ता नाहि । अपना भार न उठ सके और लेत पुनि सीस, सो पैड़े क्यों पहुँचिहैं जपि जिनरंग जगदीश । दसूं द्वार का पिंजरा आतम पंछी मांहि, जिन रंग अचरिज रहतु है गये अचम्भौ नांहि । धर्म की बात रुचे नहीं पाप की बात सुहाई, जिनरंग दाखां छाड़िकै काग निबौरी खाइ ।
१. डा० प्रेमसागर जैन -- हिन्दी जैन भक्तिकाव्य और कवि पृ० २६७ ।
For Private & Personal Use Only
Jain Education International
www.jainelibrary.org