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मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहत् इतिहास प्रणमी मेरे पास जिन, पुरिसादाणी देव, चरण कमल नित जेहना, सेवें चहुविधि देव ।' कमलमुखी कमले स्थिति कमल शी कोमल काय;
वाणीरस मुजनेदियो, शारद करि सुपसाय । कवि अपने गुरु क्षमाविजय की वंदना करता हुआ लिखता है--
तास चरण सुपसाय लहीने, बड़नगर रही चोमासो रे;
पास पंचासर साहिब संनिधि, सफल कीउ अभ्यास रे। रचनाकाल-निधि मुनि संयमभेदी संवत्सर, विजयदशमी शनिवारे रे;
गणि जिनविजय कह गुरुनामे, श्री संघने जयकारे रे । यह रास जैन ऐतिहासिक रसमाला भाग १ में प्रकाशित है।
क्षमाविजय निर्वाण रास (१० ढाल सं० १७८६ के बाद) आदि--स्वस्ति श्री वरदायिनी, जिन पद पद्मनिवास;
सुरवर नरवर सेवता सा श्री द्यो उल्लास । जिन सारद चरणे नमी थुणस्युं मुनि महिराण,
क्षमा विजय पन्यासनो सांभलज्यो निर्वाण । अन्त --- सुगुण सोभागी सहिगुरु सांभले रे, जनकसुता जिमि राम,
काम हुँ रति ने धाम हुँ पंथी ने रे, व्यापारी मनी दाम । (मिलाइये--कामहि नारि पियारि जिमि अरु लोभी के दाम ।)
तुलसी यह रचना भी जैन ऐतिहासिक रासमाला भाग १ में प्रकाशित है। [विहरमान जिन] वीसी (सं० १७८९ राजनगर)
आदि-सुगुण सुगुण सोभागी, जम्बू द्वीप माँ होजी। अन्त--सत्तर नव्यासी, राजनगर चोमासी;
मुनि दीपविजय ना कहेण थी कीधी बीशी । यह चौबीसी बीसी संग्रह पृ० ७२२-७३७ पर छपी है।
पंचमी स्तव (ढाल ६२ सं० १७९३ पार्वजन्म दिने भाद्रवद १०, पाटण) १. मोहनलाल दलीचन्द देसाई--जैन गुर्जर कवियो भाग ५ पृ० ३०५
(न० सं०)।
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