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जिनबिजय आदि-सुत सिद्धारथ भूप नो रे सिद्धारथ भगवान । बारह परषदा आगले रे भाषे श्री वर्द्धमानरे,
भवियण चित्त धरो। इसका रचना विवरण इस कलश में देखिए--
इय वीर लायक विश्वनायक सिद्धि दायक संस्तव्यो। पंचमी तप स्तवन टोडर गुंथीजिन कहे ठव्यो। पुण्य पाटण क्षेत्र मां रे सत्तर त्राणु वत्सरे, पार्वजन्म कल्याणक दिवसे सकल भविमंगल करे ।' मौन एकादशी स्तव अथवा संज्झाय (१७९५ राजनगर) का कवि ने रचनाकाल-'वाण नन्द मुनिचन्द वरसे' लिखकर बताया है। यह भी प्रकाशित है। चौबीसी (१) आदि--नाभिनरेश नंदना हो राज,
चंदन शीतल वाणी, वारि माहरा साहिबा । यह चौबीसी बीसी संग्रह में प्रकाशित है। चौबीसी (२) आदि--प्रभ जिणेसर पूजवा
सहियर म्हारी अंग ऊलट धरी आवी। अन्त--क्षमाविजय जिन वीर समागम, पाम्यो सिद्धि निदान जी।
यह भी प्रकाशित है, चौबीसी बीसी संग्रह पृ० १८९-२२३ । पंचमहाव्रत भावना संज्झाय (५ ढाल)
__प्रथम महाव्रत उपदिशे, सुणो गोयम गुणधारी रे ।
इनके अतिरिक्त अनेक स्वाध्याय संज्झाय आदि लिखे हैं जिनकी संख्या काफी है। ये सभी संज्झाय संग्रह में प्रकाशित हैं । ३
जिनविजय (Iv) तपागच्छीय विजयसिंह सूरि>गजविजय>हित विजय>भाण विजय आपके गुरु थे। आपके 'श्रीपाल चरित्र रास' १. मोहनलाल दलीचन्द देसाई-जैन गुर्जर कवियो भाग ५ पृ० ३०६-३०७
(न० सं०)। २. वही, भाग २ पृ० ५६३-६६. भाग ३ पृ० १४५१-५२ (प्र० सं०) । ३. वही, भाग ५ पृ० ३०४-३०९ (प्र० सं०)।
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