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मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास रचनाकाल-मागसिर वदि तेरस दिने, अनुराधा बुधवार ।
- ससि मुनि तिअ शुभ संवते, स्तवन कर्यो सुखकार ।
यह चौबीसी 'चौबीसी तथा बीसी' संग्रह में सा प्रेमचन्द केवलदास द्वारा प्रकाशित है। जयविजय कुँवर प्रबन्ध (सं० १७३४ दशाडा) का आदि
आदि आदि जिणेसरु, पय प्रणमी सुविलास,
युगलाधर्म निवारियो कीन्हों धर्म प्रकाश । इसमें नेमिनाथ, धरणी और पद्मावती के पश्चात् सरस्वती की वन्दना की गई है। गुरु परम्परा इस प्रकार कवि ने बताई है--
तप गछपती नितु सेवी रे, श्रीविजयप्रभ सूरि । तस राज्ये पंडितवरुरे, नामे सुख भरपूर रे । कीर्तिविजय बुधराय नो रे, सीस कहे जयकार ।
जिनविजय कहें सांभलो रे, ओ बीजे अधिकार रे ।' रचनाकाल संवत सतर चोतरीसा वरसे नयर दसाडा मांहिने,
रास रच्यो में समकित ऊपरि, श्री शांतिनाथ सुपसाइ रे। यह रचना प्रतिक्रमण सूत्र की वृत्ति पर आधारित है ।
दस दृष्टांत ऊपर दश स्वाध्याय (सं० १७३९, उसमानपुर) आदि -- श्री जिनवीर नमी करि जी, पूछे गौतम स्वामी; भगवन नर भव ना कह्या जी, दस दृष्टान्त ना नाम
सुणो जिउ दश दृष्टान्त विचार । रचनाकाल--चंद सात त्रिय नव संवत्सरे दश दृष्टान्त विच्यार,
श्री गणधर भाष्या सूत्र थी रे, लहज्यो बहू विस्तार । यह रचना जैन सत्यप्रकाश वर्ष १२ अंक ९ पृ० २४२ से २४९ पर छप चुकी है।
जिनविजय II तपागच्छ के देवविजय आपके प्रगुरु तथा जशविजय गुरु थे। धन्ना शालिभद्र रास सं० १७२७, हरिबल चौपाई और १. मोहनलाल दलीचन्द देसाई जैन गुर्जर कवियो भाग ४ पृ० ४४२-४३
(न० सं०)। २. वही भाग २ पृ० २९७-२९९ भाग ३ पृ० १२८८-९० (प्र० सं०) और
भाग ४ पृ० ४४२-४४५ (न० सं०) ।
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