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मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
इसकी प्रति० सं० १७५८ की अजबसागर द्वारा लिखित उपलब्ध है अतः रचना इससे कुछ पूर्व की होगी । आपकी अन्य रचनाओं का अधिक विवरण या उद्धरण नहीं प्राप्त हो सका ।
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जितविमल - - आपने ऋषभपंचाशिका बालावबोध सं० १७४४ में लिखा । इनकी न तो गुरुपरम्परा दी गई है न इनका रचना का विवरण या उद्धरण दिया गया है ।
जिनउदय (जिनोदय सूरि ) - खरतरगच्छ, वेगड़शाखान्तर्गत जिनसुन्दर सूरि के शिष्य थे । इन्होंने अपनी रचना सुरसुन्दरी सुरकुमार या अमरकुमार रास सं० १७६९, श्रावण मास में लिखी । कवि ने रचनाकाल बताते हुए लिखा है-
संवत उगणोत्तर श्रावण मासे, अह रच्यो उलासे, वेगड़ खरतर गच्छ विराजै, गुणसमुद्र सूरि गाजै । वर्तमान गुरुगच्छ बडइ, श्री जिनसुंदर सूरिंदा, श्री उदसूरि कर जोड़े गावै, सुष सम्पत्ति सदा । इनकी दूसरी रचना '२४ जिन सवैया' सं० १७६२ के उपरान्त लिखी गई होगी ।
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आदि - - नाभिराय जूं का नंद मरुदेवा कुखि चंद, नयरि विनीता विंद जाको जन्म जानीयै ।
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ऋषभ जिनंद इंद सेवे सुरनर चंद, उदै सूरि वन्दे वृन्द उपम बखानिये ।
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कवि ने अपना नाम सर्वत्र उदैसूरि ही लिखा है । श्री अगरचन्द नाहटा ने भी इनका नाम उदयसूरि ही दिया है । परन्तु श्री मोहनलाल दलीचंद देसाई ने कहीं जिनउदय और कहीं जिनोदय भी दिया है । इसका अन्तिम छन्द निम्नांकित है-
१. मोहनलाल दलीचन्द देसाई - जैन गुर्जर कविओ, भाग २ पृ० ५९२; भाग ३, पृ० १६३२ (प्र० सं० ) और भाग ५, पृ० ४५ ( न० सं० ) ।
वही भाग ५, पृ० २६९ (न० सं० ) ।
२.
३. अगरचन्द नाहटा -- परंपरा पृ० १०८ ।
४. मोहनलाल दलीचन्द देसाई -- जैन गुर्जर कविओ भाग २ पृ० १८६-१८७
(प्र० सं० ) ।
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