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मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहदे इतिहास
इनके अलावा इनकी दो और लघु कृतियाँ प्रकाशित हैं । पहिली है - गौतम स्वामी स्वाध्याय ( ६ कड़ी सं० १७६८ भाद्र कृष्ण ५ बुध मंगरोल) और दूसरी है सीमंधर विनती (कड़ी १३, सं० १७७१ भाद्र शुक्ल १३, कुंतलपुर ) । ये दोनों लघु कृतियाँ लोकागच्छ प्रतिक्रमण सूत्र में प्रकाशित है । इनकी एक रचना 'धन्नानो रास' में (१७ ढाल ) धन्ना सेठ की कथा कही गई है । यह इतनी प्रसिद्ध है कि समस्त हिन्दी भाषी क्षेत्र में किसी विशेष धनी, दानी पुरुष को लोग धन्नासेठ कहते हैं; इसकी अंतिम पंक्तियाँ ये हैं
सही सत्तर मी ढाल मां दुख दारिद्र दूर गमाया रे, लिखमीचंद पसाउले, ओम गंगमुनी गुण गाया रे । '
गंगविजय आप तपागच्छीय विजयदेव > लावण्यविजय > नित्यविजय के शिष्य थे | आपने गजसिंह कुमाररास और कुसुम श्रीरास नामक दो उल्लेखनीय रचनायें की हैं ।
गजसिंह कुमार रास ( ३ खण्ड सं० १७७२ कार्तिक कृष्ण १० गुरु ) का आदि-
पास पंचासरो सेवीइ, प्रति उगमते भांण, वामानंदन पूजीइं दिन चढ़ते मंडाण ।
यह कथा दान-धर्म के दृष्टांत रूप में कही गई है, यथादान प्रबन्धे गजसिंह मुनीनो, छे अहनो संबंध जी, तिहां थकी में जोई कीधो, सरस मीठो ओ खंध जी ।
रचनाकाल --- संवत संयम नग युग्मने वर्षे, कात्ति मास वदि पक्षे जी, गुरुवारि तिथि दसमी दिवसे, पूर्ण कीधो सुप्रत्यक्षे जी ।' कुसुम श्री रास - - (५५ ढाल १७७७ कार्तिक शुक्ल १३ शनि, का आदि
मातर)
पुरुषादाणी पास जी तेतीसमो जिनचंद, सुखसंपति जिन नाम थी, पामै परम आणंद |
१. मोहनलाल दलीचन्द देसाई -- जैन गुर्जर कविओ भाग २ पृ० ४५९-६२, भाग ३ पृ० १४०७ (प्र० सं० ) और भाग ५ पृ० २१७ - २२० ( न० सं० ) । २. वही भाग २ पृ० ५१७-५२१, भाग ३ पृ० १४३४ ( प्र० सं० ) और भाग ५ पू० २८४-२८७ ( न० सं० ) ।
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