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जगजीवन
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उनकी कई पत्नियों में मोहनदे संघहन, सर्वाधिक रूपवती और गुणवती थीं। उनकी भगवान् जिनेन्द्र में बड़ी श्रद्धा थी । इन्हीं की कोख से जगजीवन का जन्म हुआ । इन्होंने सं० १७०१ में ही 'बनारसी विलास' का संग्रह किया था । उसके 'संग्रहकर्त्ता परिचय' के अन्तर्गत लिखा है
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नगर आगरे में अगरवाल आगरी, गरग गोत आगरे में नागर नवल सा । संघही प्रसिद्ध अभयराज राजमान नीके, पंचबाला नलिनि में भयो है कॅवल सा । ताके परसिद्ध लघु मोहनदे संघहन, जाके जिनमारग में विराजत जस धवल सा ।
ताही को सपूत जगजीवन सुदृढ़ जैन, बनारसी बैन जाके हिय में सबल सा । '
उस समय देश में जहाँगीर का शासन था, चारों ओर सुख-शांति विराजमान थी । परिवार धर्मप्राण था । ऐसे अनुकूल वातावरण में जगजीवन जी अपने अध्यवसाय से नामी विद्वान् हुए । उन्होंने स्वयं लिखा है
समै जोग पाइ जगजीवन विख्यात भयौ, ज्ञानिन की मंडली में जिसको विसास है ।
वे धर्म और विद्वत्ता के साथ राजनीतिक क्षेत्र में भी पर्याप्त प्रभावशाली थे । प्रसिद्ध उमराव जाफर खाँ ने उन्हें अपना मंत्री नियुक्त किया था । पं० हीरानन्द ने पंचास्तिकाय टीका में लिखा है-.
ताको पूत भयो जगमानी, जगजीवन जिनमारग मानी । जाफर खाँ के काज सँभारे, भया दिवान उजागर सारे ।
वे बनारसीदास के भक्त थे । उनकी बिखरी रचनाओं की ‘बनारसी विलास' में संकलित करने का महत्वपूर्ण कार्य उन्होंने सम्पन्न किया । उनके समयसार की टीका की । इनके अलावा मौलिक रचनाओं में 'एकीभाव स्तोत्र' और अनेक भक्तिभावपूर्ण पद उल्लेखनीय हैं । एकीभाव स्तोत्र भक्तिप्रधान काव्य है । एक उदाहरण लीजिए-
१. बनारसी विलास - संग्रहकर्ता परिचय पृ० २४१
२.
डा० प्रेमसागर जैन -- हिन्दी जैन भक्ति काव्य और कवि पृ० २१२
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