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कोतिसागर सूरि शिष्य
इसका नाम भीम चौपाई इसलिए है क्योंकि इसमें भीमासाह ने केशरिया जी का संघ निकाला था; वे बड़े दानी थे, उनके गुणानुवादार्थ यह चौपाई लिखी गई है। भीम पोरवालवंशीय उदयकरण और उनकी पत्नी अंबु के पुत्र थे। ये ठाकुर अमरसिंह चौहान के मन्त्री थे । भीम ने जो संघ यात्रा निकाली थी उसी का इसमें मख्यतया वर्णन किया गया है। कवि ने लिखा है कि भीम परोपकारी, सत्यवादी, दानी, देवगुरु सेवक और सप्तक्षेत्र में धनी सद्व्यय करने वाले सत्पुरुष थे।' संघयात्रा वर्णन से सम्बन्धित कुछ पंक्तियाँ प्रस्तुत हैं
संवपति तिलक धराविउ, मारग चाले मनरंग । के वाहण के पालकी के नर चड्या तुरंग । चतुर पुरुष छयल जे श्रावक समकितधार,
मारग चाले मयमंता करता जयजयकार । इसमें प्रयुक्त 'छयल' शब्द तुलसीद्वारा राम की बारात में जानेवाले घुड़सवार 'छयल' से तुलनीय है। इसका रचनाकाल इन पंक्तियों में बताया गया है--
संवत सतर बयतालीसमे रे मैत्री पुन्यम सुखकार ।
जे नर भणे गुणे ने सांभले रे तस घर जयजयकार । लेखक ने स्वयं को कीर्तिसागर का शिष्य बताया है परन्तु अपना नाम नहीं दिया है, यथा
सकल भट्टारक-पुरंदर सिरोमनी श्री कीर्तिसागर सूरिंद । तत् शिष्ये जोड़ी चौपई रे, पुजपुर नगर मझार ।
कोतिसुन्दर या कान्हनी --खरतरगच्छ जिनभद्रशाखा के धर्मसिंह आपके गुरु थे।
अवंती सुकुमार चौढालिपु, मांडकरास, अभयकुमारादि पंचसाधुरास, कौतुकपचीसी, चौबोली चौपई, वाग्विलास कथासंग्रह आपकी प्राप्त रचनायें हैं। इनका विवरण निम्नाङ्कित है__ अवंतीकुमार चौढालिपु ( सं० १७५७ मेड़ता, चौमासा) १. ऐतिहासिक जैन संग्रह भाग १ २. वही
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