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मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
कुशलो जी -- लोकागच्छीय आचार्य श्री भूधर जी के शिष्य हैं । इनका जन्म सं० १७६७ और मृत्यु सं० १८४० में हुआ था । इनका जन्म सेठों की रीयाँ ( मारवाड़) में हुआ । इनके पिता का नाम लाधूराम जी चंगेरिया और माता का नाम कानूबाई था । इन्होंने सं १७९४ फाल्गुन शुक्ल सप्तमी को आचार्य भूधर से दीक्षा ली थी आचार्य जयमल्ल जी इनके गुरुभाई थे । आप प्रभावशाली संत, शास्त्रज्ञ विज्ञान और कवि थे । इनकी रचनाओं राजमती संझाय, साधुगण की संझाय, दशारणभद्र को चोढालियो, धन्ना की ढाल, नेमनाथ जी का सिलोका, विजयसेठ विजया सेठानी संझाय के अलावा अनेक स्तवन और उपदेशपरक पदादि प्राप्त हैं । सीताजी को आलोयणा कुशलो जी की रचना कही गई है । पता नहीं यह कुशल की, कुशलसिंह की या कुशलोजी की रचना है, पाठ मिलान करने पर ही यह स्पष्ट हो सकता है । लोकागच्छ के रामसिंह के शिष्य कुशल की रचना सीता आलोयणा और दशार्णभद्र चौढालिउ की चर्चा पहले की जा चुकी है इसलिए ये रचनायें इनकी नहीं हो सकतीं । शेष दो-तीन रचनायें जैसे राजमती संञ्झाय, धन्ना की ढाल, विजयसेठ विजया सेठानी संझाय इनकी रचनायें हो सकती हैं। इनकी सूचना डॉ० नरेन्द्र भानावत और शान्ता भानावत ने अपने लेख 'राजस्थानी कवि-३' में दी है । परन्तु कुशल, कुशलो के व्यक्तित्व और कृतित्व का स्पष्ट निरूपण नहीं किया है ।
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केसर - आपकी एक रचना 'चंदनमलयागिरि चौपई' (सं० १७७६ ) है जिसका आदि-
सानिध कारी सारदा, समरूं हुं सुप्रभात, जोडि कला द्यो जुगति सुं, मया करेज्यो मात । कहाँ चंदण मलयागिरी, कहां सायर कहां नीर । कहिसु तिणकी बारता, सुणसीसह बड़वीर 1, और
रचनाकाल - संवत १७७६ तरे जी लाहे नगर चोमास ।
महाजन सहु सुषीया वसे जी दिनदिन लील विलास ।
१. डॉ० नरेन्द्र भानावत, राजस्थानी कवि-३ 'लेख संकलित राजस्थान का
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